Wo 24 Ghante , livre ebook

icon

104

pages

icon

English

icon

Ebooks

2015

Écrit par

Publié par

icon jeton

Vous pourrez modifier la taille du texte de cet ouvrage

Lire un extrait
Lire un extrait

Obtenez un accès à la bibliothèque pour le consulter en ligne En savoir plus

Découvre YouScribe et accède à tout notre catalogue !

Je m'inscris

Découvre YouScribe et accède à tout notre catalogue !

Je m'inscris
icon

104

pages

icon

English

icon

Ebooks

2015

icon jeton

Vous pourrez modifier la taille du texte de cet ouvrage

Lire un extrait
Lire un extrait

Obtenez un accès à la bibliothèque pour le consulter en ligne En savoir plus

He had left the prison far behind.. His main worry now was to escape the police. He takes shelter in a deserted rail coach to escape them . But in the light of a lamp flickring in the wagon he spots a man sitting. He was wearing a police uniform. He shudders at the site. What option did Vimal have. Could he dodge that man who was chasing him relentlessly. But could he run away from his past and where would he escape from the people who were responsible in shaping his life and the direction it took. He has been successful in escaping the prison. Really? This novel with thriller like pace will entice you. Note: This book is in the Hindi language and has been made available for the Kindle, Kindle Fire HD, Kindle Paperwhite, iPhone and iPad, and for iOS, Windows Phone and Android devices.
Voir icon arrow

Publié par

Date de parution

21 avril 2015

EAN13

9789352140466

Langue

English

कुल सैकिया


वो 24 घंटे
अनुवाद राकेश पाठक
अनुक्रम
लेखक के बारे में
अध्याय 1
अध्याय 2
अध्याय 3
अध्याय 4
अध्याय 5
अध्याय 6
अध्याय 7
अध्याय 8
अध्याय 9
अध्याय 10
अध्याय 11
अध्याय 12
अध्याय 13
अध्याय 14
अध्याय 15
अध्याय 16
अध्याय 17
अध्याय 18
अध्याय 19
अध्याय 20
अध्याय 21
अध्याय 22
अध्याय 23
अध्याय 24
पेंगुइन को फॉलो करें
सर्वाधिकार
पेंगुइन बुक्स
वो 24 घंटे
कुल सैकिया ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया है और फिलहाल अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के पद पर कार्यरत हैं। उनके 18 कहानी संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उन्हें असम में मुनीन बरकातकी अवार्ड फॉर बेस्ट बुक तथा उनकी कहानी ‘अवर्त’ के लिए कथा अवार्ड प्राप्त हुआ है।
राकेश पाठक एक चर्चित अनुवादक, लेखक और स्वतंत्र पत्रकार हैं। कई चर्चित साहित्यकारों की रचनाओं का इन्होंने हिंदी में अनुवाद किया है। इनकी लिखी कविता और कहानी की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
1
उसने पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहा।
सिर घुमाकर पीछे देखने से उसकी रफ़्तार धीमी पड़ सकती थी। पतले रास्ते पर ठोकर खा कर खुले नाले में गिर सकता था। कोई दुर्घटना घट सकती थी।
विमल ने अनजाने में ही इतना सारा हिसाब-किताब लगा लिया था।
उसने सामने के खुले मैदान को जितनी जल्द हो सके पार करने की कोशिश की। यहां वहां जंगली झाड़ियों, बेलों, धारदार घास-फूस से उसके हाथ-पैर खरोंचों से भर गए थे और उनमें दर्द हो रहा था। लेकिन यह दर्द उसे ज़रा भी विचलित नहीं कर सका था। यह सब उसके लिए बहुत ही छोटी बात थी, उसने सोचा।
मैदान के सिरे पर पहुंच कर विमल पेड़ों के झुरमुट में समा गया। उसने इस बार पीछे मुड़ कर देखा, अंधेरे की दीवार भेद कर उसकी नज़रें ज़्यादा दूर नहीं जा सकीं। लेकिन उसने बड़ी सहजता से अनुमान लगा लिया कि अब तक वह काफी दूर निकल आया है।
विमल इस बार पत्थर जैसी किसी कड़ी चीज़ पर बैठ गया। उसकी सांस की आवाज़ सन्नाटे की सांय-सांय में खो गई। वह ज़्यादा समय तक वहां आराम नहीं कर सका था।
वह जहां खड़ा था, उसके आगे जीवन था और पीछे मौत।
उसको लगा कि उसकी पिंडली पर पानी जैसा कुछ बह रहा है। उसने छू कर देखा—दौड़ने-भागने में उसकी पिंडली कट गई थी और उससे खून बह रहा था। वो यहां ज़्यादा देर छिपा नहीं रह सकता। खून की यह धार उसके लिए काल बन जाएगी।
विमल उठकर खड़ा हो गया।
वह जानता था कि पेड़ों के झुरमुट से निकलते ही उसके सामने चार-पांच फुट लंबा एक नाला आ जाएगा जिसमें शहर का गंदा पानी दिन-रात बहता रहता है। उसे लगा कि उसने बहुत ही छोटे रास्ते से मैदान को पार किया है।
अब तक वह नाले के किनारे तक पहुंच गया था।
छलांग लगाकर नाले को पार करते समय उसके पैर एक तरह से संज्ञाहीन हो गए। वह ‘धप्प’ करके पानी की धार में गिर पड़ा। कुछ ही दूरी पर सांड़ों को चलते देखकर उसका कलेजा दहल गया। उसको लगा जैसे कि उसकी छाती के अंदर भयंकर आवाज़ के साथ कोई मशीन चलने लगी है। गंदे नाले से उठने वाली बदबू से उसका सिर घूमने लगा था। उसके हाथ पैरों की हरकत से गंदे नाले के कीचड़-पानी में मौजूद कीड़े-मकोड़ों में हलचल पैदा हो गई थी। इन कीड़े-मकोड़ों का कर्कश स्वर उसके कानों को फाड़े डाल रहा था। विमल इस बात का ठीक-ठीक अनुमान नहीं कर पाया था कि एक भगोड़े सैनिक की तरह कितनी देर तक उस स्थिति में, बिना हिले-डुले, चुपचाप पड़ा रहा था। उसे ऐसा लगा कि इस दुखद, भयावह स्थिति से उबरने में उसे काफी समय लगा। गंदे नाले के उस पार चलने वाले दो लोगों के कदमों की आहट उसे साफ तौर पर सुनाई दी थी। उन दोनों व्यक्तियों के हाथ के टॉर्च की मद्धिम सी रोशनी एक बार जल उठती थी तो दूसरे ही पल बुझ जाती थी, ठीक जुगनू की तरह। इसी बीच विमल ने यह अनुमान भी लगा लिया था कि वे लोग उसके काफी करीब आ चुके हैं। इसी बीच शायद सबको पता चल चुका होगा कि विमल क्या करके आया था।
खतरे की घंटी बज गई है।
चारों तरफ जाल फैला दिया गया है। फनियल सांप अपना फन फैला चुका है। विपत्ति का अंधेरा उसके चारों तरफ फैल चुका है और साथ ही साथ मौत अपनी ठंडी छुअन के साथ उसकी ओर बढ़ रही है।
विमल ने तय कर लिया कि अगले ही पल उसके जीवन के सबसे बड़े सवाल का जवाब उसे मिल जाएगा, जिसे उसने मृत्यु का नाम दे रखा है। किंतु दो अक्षरों के इस शब्द के लिए उसने गंदे नाले के इस बदबूदार कीचड़ को क्यों अपना लिया है? उसने हर तरह से सोचकर ही अरूपा से कहा था कि इस तरह से आत्महत्या करके मृत्यु को अपनाने में उसे कोई तुक दिखाई नहीं पड़ता है।
‘मृत्यु, मृत्यु ही होती है, तुम उसे चाहे किसी भी भाषा के द्वारा गौरवान्वित क्यों न करना चाहो। जीवन की शून्यता को तुम्हें स्वीकार करना ही पड़ेगा। मृत्यु जब तुम्हारे करीब आ गई है तो इससे बढ़कर दूसरी और कोई सच्चाई नहीं हो सकती है। फांसी का फंदा, बंदूक की गोली, प्रौढ़ता का अंतिम क्षण है। तुम्हारी मृत्यु की कोई भी वजह क्यों न हो...बात एक ही है...शेष...शून्य... एक निरंकुश स्थितिहीन संज्ञा।’
अरूपा के साथ बहस करने का उसे कोई कारण नहीं मिल रहा था।
कारण?
कारण यह था कि वह स्विच से चलनेवाले यंत्र की तरह था। उससे जैसा कहा गया था, उसने उसी तरह से अरूपा को स्वीकार किया था। उसकी सारी परिकल्पनाएं, सारी परियोजनाएं अरूपा द्वारा ही बनाई जाती थीं। वह उनको केवल व्यवहार में उतारनेवाला भर था। बस इतनी ही थी उसकी ज़िम्मेदारी।
इतना ही न?
विमल ने एक बार फिर बातों को दोहराया।
उसने कहा था—‘मैं समझता हूं, ऐसे दुस्साहसिक अभियान का कोई अर्थ नहीं है। असल में यह एक असाध्य काम है। ज़ोर-ज़बर्दस्ती करने पर भी नतीजा कुछ नहीं निकलेगा, मैं यह जानता हूं।’
‘अब तुम्हारे सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं है। कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। यह बात तुम अच्छी तरह जानते हो। असल बात यह है कि इतने वर्षों तक कुछ भी नहीं करने, काम के प्रति बेपरवाही, ज़िम्मेदारी की कमी आदि ने तेरे अंदर के आदमी को कमज़ोर बना दिया है। निश्चित रूप से मृत्यु के सामने खड़े हो जाने से जीवन के प्रति तुम्हारी तड़प खत्म हो गई है।’
अंधेरे में दीवार की आड़ लेकर बहुत देर तक बातें करने का मौका उन्हें कभी नहीं मिला था। चारों तरफ की सतर्क निगाहों से बचकर मिलने की उनके पास वही एक जगह थी। वही एक छोटी सी जगह थी जहां दोनों ने बहुत सारे विषयों पर बहस की थी, बहुत सी बातें कही-सुनी थीं, वे छोटी-छोटी बातें ही उनके सुख-दुख, भूत-भविष्य का दस्तावेज़ थीं। दो दीवारों की टूटी ईंटों, झड़ गए प्लास्टर के बीच फंस कर रह गए हैं उनकी बातों के टुकड़े, आती-जाती सांस, आवेग और अनुभूति से भरे आलाप-प्रलाप।
‘मेरे लिए बस एक ही बात रह गई है—एक भगोड़े आदमी की तरह गले में रामनामी लपेट कर मैं जीवन का कोई स्वप्न देखना नहीं चाहता। सच बात तो यह है कि जीवन नाम की ये जो चीज़ है उसके प्रति घोर नफरत ने मुझे घेर लिया है। मेरी समझ से तुमने मुझे एक ऐसे अपराध के लिए प्रेरित करके खुद को और मुझे असमंजस में डाल दिया है। तुम्हारी इस सहज अंतरंगता को मैं...।’
विमल की बाधा की दीवार अरूपा ने गिरा दी थी।
उसके एक-एक तर्क, अभिभावक की तरह दायित्व का निर्वाह करते हुए कड़े आदेश के आगे वह अपनी खुद्दारी को भूल कर घोंघे की तरह अपने ही खोल में घुस कर बोला था, ‘ठीक है, मैं आगे बढ़ूंगा।’
आगे बढ़ते हुए आ रहे दोनों व्यक्तियों के कदमों की आहट काफी नज़दीक से सुनाई पड़ने लगी थी।
आहट धीरे-धीरे साफ होती जा रही थी।
विमल ने ऐसा ही अनुभव किया। उसने अपने हाथ-पैर के साथ पूरे शरीर को स्थिर बनाए रख कर हिले-डुले बिना अपने दोनों कानों को दोनों व्यक्तियों के चलने की आहट की ओर लगाए रखा। हालांकि वह अचानक इस प्रकार आने वाले खतरे के प्रति सतर्क था। लेकिन फिर भी उसका मन सशंकित हो गया था।
उसकी सांसों की गति तेज़ हो गई थी।
आने वाले दोनों व्यक्तियों के सामने किसी भी क्षण उसे आत्मसमर्पण कर देना था। उसे एक बार फिर कसाईखाने में घसीट कर ले जाते हुए बकरे की तरह उसी दीवार के घेरे के अंदर ले जाया जाएगा। इसके बाद वहां आएगा एक...
विमल ने हाथों से टटोल कर देखा। अंधेरे में उसका हाथ गंदे नाले में पड़े कुछ पत्थरों से जा टकराया।
उसने एक बड़े से पत्थर को दोनों हाथों से उठा लिया। यही होगा अपने बचाव में उसका हथियार। उन दोनों व्यक्तियों के हाथों पकड़े जाने से पहले ही उसे यह बड़ा पत्थर उनके ऊपर दे मारना होगा। एक माहिर शिकारी की तरह पत्थर के एक ही वार से उन दोनों का काम तमाम कर देना होगा। अगर वे बच भी गए तो पलट कर उनके हमला करने से पहले ही विमल को यहां से भाग जाना होगा।
इसके अलावा उसके पास और कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
‘एक बात याद रखना, कुछ अनजाने लोग तेरे लिए दरवाज़ा खोल कर इंतज़ार कर रहे हैं। तुम्हारा आना ही उनके जीवन की ताकत होगी...तुम्हें मुक्ति की ओर बढ़ना होगा। ऐसा नहीं करने पर मैं समझूंगी कि तुम कायर हो...डरपोक हो...नपुंसक हो। मैं प्रतीक्षा करूंगी तुम्हारी मुक्ति की उस खुशखबरी की।’
बात कहते-कहते शायद अरूपा की आंखों से आंसू टपक पड़े थे पर विमल उसे देख नहीं पाया था। अंधेरे में उसने केवल इतना अनुभव किया था कि बात कहते-कहते अरूपा की आवाज़, आवेग से कांपने लगी थी। यह आवेगमय कंपन विमल के लिए बिल्कुल अप्रत्याशित था। दोनों का परिचय, दोनों का साथ मात्र कुछ महीनों का था। इसी दौरान उसने समझ लिया था कि अरूपा दृढ़ इच्छाशक्ति वाली है, आत्मविश्वासी है। प्रत्येक भेंट में, प्रत्येक बहस में उसने उसके सामने हार मान ली थी। उसकी निर्मल सरलता ने ही दोनों के बीच एक नया सपना देखने का, जीवन को जीने का सुयोग रचा था। उसे जीवन की प्रेरणा दी थी।
विमल को जीवित रहना होगा।
उसे अच्छी तरह पता चल गया था कि उसका पीछा करने वाले दोनों व्यक्ति उसके काफी नज़दीक पहुंच चुके हैं। अपने हाथों में बहुत देर से उस बड़े पत्थर को उठाए-उठाए वह थक गया था।
उसे लगने लगा था मानो वह प्रागैतिहासिक युग का आदमी है जिसकी आत्मरक्षा और पलटवार का एकमात्र औजार विशाल अनगढ़ पत्थर ही था। उसे लगने लगा था मानो वह जंगली जानवरों से खुद को बचाने वाला कोई आदिमानव है।
विमल को जीवित रहने के कुछ और क्षण मिल गए थे।
हालांकि आने वाले दोनों व्यक्ति अंधेरे में थे, लेकिन वो वहां थे। अलकतरा वाली बजरी की सड़क पर उनके बूटों की तेज़ आवाज़ आ रही थी। उसने यह भी अनुमान लगा लिया था कि उसकी खोज में वे दोनों पुलिस वाले इस समय घायल शेर की तरह गुस्साए हुए हैं। पुलिस के वे दोनों आदमी उसके छिपने के स्थान पर किसी भी पल पहुंच सकते हैं। पत्थर के उसके कमज़ोर हमले से बच कर, अपने हाथ में पकड़ी बेंत से मार-मार कर वे उसे धराशायी कर देंगे। और...
वे लोग और नज़दीक आ गए थे।
विमल ने अपने पत्थर वाले हाथ को और ऊपर उठा लिया।
पत्थर के भार से उसके हाथ-पैर कांप रहे थे। इस दशा में उसका और एक पल भी खड़ा रहना असंभव हो गया था। इसी क्षण उसे कुछ फैसला करना होगा..
अपने शरीर का पूरा ज़ोर लगा कर वह पत्थर को घुमा कर पीछे की ओर ले गया। अब उसे मिसाइल की तरह, बहुत तेज़ी से उस पत्थर को उनकी ओर फेंकना होगा नहीं तो किसी भी पल उसके जीवन का दीप बुझ जाएगा।
2
लेकिन वह पत्थर फेंक नहीं पाया।
उसके दोनों हाथ धीरे-धीरे नीचे की ओर आ गए। बिना आवाज़ किए उसने पत्थर को नीचे रख दिया। पत्थर नीचे रखने से गंदे नाले का कीचड़ छिटक कर उसकी आंखों और चेहरे पर आ गया। फिर भी उसकी खुली आंखें बंद नहीं हुईं।
उसकी तरफ आने वाले दोनों व्यक्ति उसकी तरफ न आकर दूसरी ओर के रास्ते पर मुड़ गए थे। विमल को लगा जैसे वे दोनों रात में पहरा देने वाले पुलिस वाले थे। उसके दिल की धड़कनें कम हो गईं। उसने अनुभव किया कि सिर पर लटकते खतरे से छुटकारा पाने की खुशी के बावजूद वह थकान से चूर-चूर हो गया है। उस पर एक भयानक अवसाद छा गया है। शरीर के अंग-अंग में उठ रही थकान की पीड़ा से कहीं अधिक मानसिक वेदना ने उसके तन-मन को शिथिल कर दिया था।
फिर भी उसने सोचा कि यहां पर अधिक देर तक रुकना उसके लिए आत्मघाती सिद्ध होगा। वह धीरे-धीरे खड़ा हो गया। गंदे

Voir icon more
Alternate Text