121
pages
Hindi
Ebooks
2022
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Publié par
Date de parution
30 juin 2022
Nombre de lectures
3
EAN13
9789354922909
Langue
Hindi
Publié par
Date de parution
30 juin 2022
EAN13
9789354922909
Langue
Hindi
हिन्द पॉकेट बुक्स
पैंतरा
10 जून, 1955 को मेरठ में जन्मे वेद प्रकाश शर्मा हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार थे। उनके पिता पं. मिश्रीलाल शर्मा मूलत: बुलंदशहर के रहने वाले थे। वेद प्रकाश एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे हैं। एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी मृत्यु हो गई। 1962 में बड़े भाई की मौत हुई और उसी साल इतनी बारिश हुई कि किराए का मकान टूट गया। फिर एक बीमारी की वजह से पिता ने खाट पकड़ ली। घर में कोई कमाने वाला नहीं था, इसलिए सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई। मां के संघर्ष से इन्हें लेखन की प्रेरणा मिली और फिर देखते ही देखते एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखते चले गए।
वेद प्रकाश शर्मा के 176 उपन्यास प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त इन्होंने खिलाड़ी श्रृंखला की फिल्मों की पटकथाएं भी लिखी। वर्दी वाला गुंडा वेद प्रकाश शर्मा का सफलतम थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की आज तक करोड़ों प्रतियां बिक चुकी हैं। भारत में जनसाधारण में लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों की दुनिया में यह उपन्यास सुपर स्टार का दर्जा रखता है।
हिन्द पॉकेट बुक्स से प्रकाशित
लेखक की अन्य पुस्तकें
वर्दी वाला गुण्डा सुहाग से बड़ा सुपरस्टार चक्रव्यूह कारीगर खेल गया खेल सभी दीवाने दौलत के बहु मांगे इंसाफ़ कैदी नं 100 साढ़े तीन घंटे हत्या एक सुहागिन की
वेद प्रकाश शर्मा
पैंतरा
विषयक्रम
पैंतरा
फॉलो पेंगुइन
कॉपीराइट
पैंतरा
रात का वक्त।
जंगल में चारों तरफ चांदनी छिटकी पड़ी थी। पंकज ने बाइक को चकरोड पर उतारने के बाद, थोड़ी दूर खड़ी एक मर्सिडीज के करीब पहुंचने से पहले रोका ही इसलिए था ताकि अपने चेहरे को नकाब से और हाथों को ग्लब्स से छुपा सके।
यह एहसास उस पर घबराहट हावी किए दे रहा था कि कुछ देर बाद वह राजेश कुमार का मर्डर करने वाला है पर यह सोचकर खुद में हौसला पैदा करने की कोशिश कर रहा था कि इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है और प्लान बेहद सुदृढ़ है।
वह कभी नहीं पकड़ा जा सकता। हिम्मत करके बाइक आगे बढ़ानी शुरू की।
चेहरा छुपा होने के बावजूद पंकज ने हैडलाइट को ऐसे कोण पर रखा था कि राजेश कमार चेहरा न देख सके क्योंकि नकाब देखकर वह चौंक सकता था। काफी नजदीक आकर उसने बाइक रोकी।
इंजन बंद होते ही हैडलाइट भी ऑफ हो गई। चारों तरफ अंधेरा और गहन सन्नाटा छा गया। पंकज ने बाइक स्टैंड पर लगाई।
तब तक राजेश कुमार और बगल में खड़ी उसकी पत्नी अर्थात् सोनम की आंखें चांदनी में देखने योग्य हो चुकी थीं। हमेशा की तरह राजेश कुमार के हाथों में व्हिस्की की बोतल थी।
आगंतुक के चेहरे पर नकाब देखते ही वह बोला–“अरे, तुमने अपना चेहरा क्यों ढक रखा है भाई?”
नकाब से झांकती आंखों से पंकज ने एक बार सोनम की तरफ देखा। उस सोनम की तरफ जो इस एहसास से जहां की तहां खड़ी थरथर कांप रही थी कि अगले मिनट पंकज उसके पति राजेश कुमार को गोलियों से भून देने वाला है।
पंकज की घबराहट अपनी पराकाष्ठा पर थी। यह एहसास दिमाग की धज्जियां उड़ाए दे रहा था कि अगले ही पल वह राजेश कुमार की हत्या करने वाला है। जेहन के किसी कोने से आवाज़ आ रही थी- नहीं पंकज, मत कर ऐसा।’ मगर, साथ ही वह यह भी जानता था कि पीछे हटने का समय बहुत पीछे छूट चुका है।
अब तो वह सब करना ही था।
सो, जिस्म में कंपन के बावजूद जेब में हाथ डाला और रिवॉल्वर निकाल लिया। रिवॉल्वर को देखते ही राजेश कुमार चीखा–“बचो सोनू, यह तो कोई लुटेरा है।”
साथ ही हाथ में मौजूद बोतल ज़ोर से पंकज को फैंककर मारी। पंकज को ऐसी उम्मीद नहीं थी इसलिए बच न सका। बोतल उसके पेट पर लगी थी और कदमों में गिरकर फूट गई।
पंकज ने राजेश कुमार पर रिवॉल्वर तान जरूर दिया था लेकिन हजार कोशिशों के बावजूद ट्रिगर नहीं दबा पा रहा था।
हाथ बुरी तरह कांप रहा था उसका।
उत्तेजना की ज्यादती के कारण सोनम चिल्लाई–“देर क्यों कर रहा है मूर्ख! गोली चला। खत्म कर दे इसे।”
पिट्ट! साइलेंसर के कारण चारों तरफ छाए सन्नाटे के बीच बस ऐसी आवाज़ हुई जैसे कोई कंकर जमीन पर गिरा हो परंतु राजेश कुमार के मुंह से निकली चीख ने वातावरण को दहला दिया था।
उसका हाथ बिजली की-सी गति से अपनी छाती के बाएं हिस्से पर पहुंचा। यही समय था जब खून का फव्वारा उसके हाथ को चीरता हुआ हवा में उछला। । उस वक्त वह बुरी तरह लड़खड़ा रहा था जब भयाक्रांत सोनम ने चीखकर कहा “एक और एक और।”
दांतों पर दांत जमाए पंकज ने दूसरा फायर किया। एक बार फिर ‘पिट्ट’ की आवाज़ हुई। इस बार राजेश कुमार का हाथ अपने पेट पर पहुंचा। वहां से भी खून का फव्वारा उछला। साथ ही, राजेश कुमार का संपूर्ण जिस्म हवा में उछल गया था।
और जब वह जमीन पर गिरा तो बस गिर गया। उठना तो दूर, हलचल तक नहीं थी उसमें। जैसे गिरा था, वैसे ही पड़ा रह गया। मंह से कराह तक की आवाज़ नहीं निकल रही थी। वातावरण में पूरी तरह सन्नाटा छा गया था। किसी के मुंह से चूं-चां तक की आवाज़ न निकल रही थी और यह सन्नाटा करीब दो मिनट तक छाया रहा।
फिर सोनम के मुंह से ऐसी आवाज़ निकली थी जैसे कब्र में पड़ी लाश बोली हो– “क्या यह मर गया?”
पंकज कोशिश के बावजूद हलक से आवाज़ न निकाल सका। पुनः सोनम ने ही कहा “चैक तो कर लो, मर भी गया है या ...” सेंटेंस वह भी पूरा न कर सकी। हाथ में धुवां उगलती रिवॉल्वर लिए पंकज बुरी तरह कांपती टांगों को नियंत्रित करने का प्रयास करता राजेश कुमार के जिस्म की तरफ बढ़ा। उसके करीब पहुंचा और जूते की टो से उसे हिलाया।
जब उसमें जीवन का कोई चिन्ह नजर नहीं आया तो ठीक इस तरह ठोकर मारी जैसे फुटबॉल में मारी हो और उसके परिणामस्वरूप राजेश कुमार का जिस्म उस ढलान पर लुढ़कता चला गया जो वहां से शुरू होकर एक तालाब के किनारे पर खत्म होता था।
पच्चीस फुट नीचे जब वह रुका तो नीचे का आधा जिस्म पानी में था, ऊपर का आधा बाहर।
पंकज बहुत देर तक अपने स्थान पर खड़ा उसे देखता रहा। पीछे से दौड़ती हुई सोनम नजदीक आई।
अब वह भी तालाब के किनारे पर पड़े राजेश कुमार के जिस्म को देख रही थी।
तब भी, उसके मुंह से निकला–“क. . .क्या वह मर गया?” पंकज उसकी तरफ घूमा।
चांदनी की मदद से सोनम ने उस वक्त नकाब से झांकती पंकज की आंखों में इतने हिंसक भाव देखे थे जितने हिंसक भावों की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
बुरी तरह खौफजदा होकर वह पीछे हटी। पंकज उसकी तरफ ऐसे अंदाज में बढ़ रहा था जैसे शिकार हेतु चीता हिरनी की तरफ बढ़ रहा हो।
आप सोच रहे होंगे राजेश कुमार, पंकज और सोनम कौन हैं? पंकज ने राजेश कुमार की हत्या क्यों की तथा अपने पति की हत्या में सोनम ने पंकज का साथ क्यों दिया?
वे पाठक इन सवालों के जवाब जानते हैं जिन्होंने सुपरस्टार पढ़ा है मगर जिन्होंने नहीं पढ़ा वे थोड़ा उलझ गए होंगे। वे ठीक से समझ सकें, इसलिए कहानी को आगे बढ़ाने से पहले सुपरस्टार का सारांश लिख रहा हूं
पंकज एक नया राइटर था। वह मेरठ से मुंबई अपनी स्टोरी पर फिल्म बनवाने आया था। संघर्ष करते-करते दो साल बीत जाने के बावजूद उसे कामयाबी न मिली थी।
एक रात बारह बजे उसे डेविड नाम के डायरेक्टर ने कहानी सुनने के लिए बुलाया लेकिन जहां बुलाया था, वहां डेविड नहीं मिला। बाइक पर सवार, निराश पंकज वहीं से लौट रहा था कि एक सुनसान सड़क पर कीमती गाड़ी को बुरी तरह लहराते देखा और फिर देखते ही देखते गाड़ी ज़ोरदार आवाज़ के साथ एक खम्बे से जा टकराई। उसमें आग लग गई थी। बड़ी मुश्किल से पंकज ने गाड़ी को ड्राइव कर रहे शख्स को बचाया और जब उसने उस शख्स को देखा तो बुरी तरह चौंक पड़ा क्योंकि वह अपने जमाने का सुपरस्टार राजेश कुमार था। वह राजेश कुमार जिसकी हर फिल्म सिल्वर जुबली हुआ करती थी, इसलिए उसे जुबली कुमार भी कहा जाता था। व्यक्तिगत रूप से खुद पंकज भी उसका जबरदस्त फैन था इतना ज्यादा कि राजेश कुमार को वह देवता की तरह मानता था मगर यह राजेश कुमार वह राजेश कुमार न था क्योंकि अब उसकी उम्र पचास साल हो चुकी थी और इस वक्त वह बुरी तरह नशे में था।
अपने आदर्श को उस अवस्था में देखकर पंकज को धक्का-सा लगा था मगर फिर भी यह बात उसे रोमांचित किए दे रही थी कि उसने उसकी जान बचाई थी, जिससे लाख कोशिशों के बावजूद अपने पिछले जीवन में कभी मिल तक न पाया था।
उस वक्त तो उसकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा जब राजेश कुमार ने कहा कि हमें हमारे बैंग्लो पर छोड़ दो।
बैंग्लो इतना भव्य था कि पंकज उसे देखता रह गया और उस वक्त तो उसे अपने कानों पर यकीन ही न हुआ जब राजेश कुमार ने उसे अपने साथ पीने के लिए कहा।
राजेश कुमार के होम बॉर में व्हिस्की और वाइन आदि की ऐसी ऐसी बोतलें थीं जिनके बस उसने नाम ही सुने थे। फिर उसने एक ऐसी व्हिस्की चखी जिसे कभी सूंघा तक न था।
बातों-बातों में जब राजेश कुमार को पता लगा पंकज राइटर है तो उसने अपने लिए कहानी लिखने के लिए कहा। पंकज को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई थी। उसने कहा कि उसने अपनी हर कहानी उसे और केवल उसे ही दिमाग में रखकर लिखी है। मगर कहानी लिखते वक्त जो राजेश कुमार उसके दिमाग में रहता था वह, वह था जिसे लोग जुबली कुमार कहा करते थे लेकिन अब आप पचास साल के हो गए हैं, इस उम्र के शख्स को हीरो बनाकर उसने आज तक कोई कहानी नहीं लिखी है।
राजेश कुमार उसकी स्पष्टवादिता पर बहुत खुश हुआ। बोला कि क्या तुम आज के राजेश कुमार को, उस राजेश कुमार को हीरो बनाकर कहानी लिख सकते हो जिसे इस वक्त अपने सामने देख रहे हो? जवाब में पंकज ने कहा, क्यों नहीं लिख सकता सर, आप मुझे केवल एक हफ्ता दीजिए। मैं ऐसी कहानी तैयार कर सकता हूं जिस पर बनी फिल्म सुपर-डुपर हिट होगी। राजेश कुमार ने वादा किया कि यदि कहानी पसंद आई तो वह उस पर फिल्म बनाएगा मगर शर्त ये है कि कहानी इसी बैंग्लो में रहकर लिखनी होगी। भला पंकज को क्या एतराज हो सकता था! वह तुरंत तैयार हो गया पर तभी सामने आई सोनम।
राजेश कुमार की बीवी। उम्र केवल पच्चीस और तीस के बीच। उसकी फीगर ऐसी थी कि जो देखे, देखता रह जाए। बेहद सेक्सी थी वह लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा खतरनाक।
वह राजेश की दूसरी बीवी थी। पहली बीवी, जिसका नाम प्राची था, से काफी पहले राजेश कुमार का तलाक हो चुका था।
सोनम पहले ही दृश्य में ऐसे आक्रामक अंदाज में सामने आई कि पंकज के छक्के छूट गए। एक तरफ वह सोनम के सेक्सी जिस्म को देखकर रोमांचित-सा हो गया था दूसरी तरफ यह देखने को मिला कि वह राजेश कुमार की जरा भी इज्जत नहीं करती थी। जब उसे पता लगा कि राजेश कुमार खुद को सुपरस्टार साबित करने के लिए फिल्म बनाने के मूड में हैं तो वह कहने लगी कि तुम्हारी हैसियत कहां है फिल्म बनाने की और उस वक्त तो बुरी तरह उखड़ ही गई जब पता लगा कहानी लिखने के दरम्यान पंकज बैंग्लो में रहेगा। वह इस बात के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी लेकिन राजेश कुमार भी राजेश कुमार था, उसने सोनम की एक न सुनी।
सोनम के तेवर देखने के बाद पंकज बैंग्लो में नहीं रहना चाहता था लेकिन राजेश कुमार ने कहा–‘अगर तुम यहां नहीं रहोगे तो मुझे तुम्हारी कहानी में कोई इंट्रेस्ट नहीं है।’ पंकज कांप गया। वह इस बात को अफोर्ड नहीं कर सकता था।
अपनी चलती न देख गुस्से में पैर पटकती सोनम अपने बैडरूम की तरफ चली गई। उसका जिस्म पंकज को अपनी तरफ खींच रहा था जबकि उसके व्यवहार से असमंजस में था।
वह नहीं समझ पा रहा था कि सोनम को उसके बैंग्लो में रहने पर इतनी घनघोर आपत्ति क्यों है?
पंकज का एक दोस्त था झुमरू।
झमरू फिल्मों की शूटिंग के वक्त स्पॉट-ब्वॉय का काम करता था। मुंबई में पंकज को उसी ने अपनी खोली में पनाह दे रखी थी। डेविड से मिलने पंकज उसी की बाइक से गया था।
सुबह के चार बजे झुमरू की खोली में पहुंचा। उसे जगाया और जब वह सबकुछ बताया जो हुआ था तो झुमरू ने कहा- मेरी समझ में नहीं आ रहा दोस्त कि तू ये सब क्या कह रहा है! मैंने तो सुना है आज की तारीख में राजेश कुमार एक बरबाद हस्ती है। एक ऐसा आदमी जो शराब में डूबकर खुद को तबाह कर चुका है। उस पर फिल्म बनाने के लिए पैसे कहां से आएंगे?’
एक बार को तो पंकज को लगा झुमरू ठीक कह रहा है।
सोनम ने भी तो लगभग यही कहा था! लेकिन उसने अपने दिल की आवाज़ पर ध्यान नहीं दिया।
तब झुमरू ने कहा–‘क्या इस बारे