155
pages
English
Ebooks
2015
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Publié par
Date de parution
15 mai 2015
EAN13
9789352140657
Langue
English
Poids de l'ouvrage
1 Mo
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15 mai 2015
EAN13
9789352140657
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English
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1 Mo
शालिनी जोशी शिवप्रसाद जोशी
नया मीडिया अध्ययन और अभ्यास
अनुक्रम
लेखक के बारे में
नए मीडिया का ताना-बाना
किताब के बारे में कुछ बातें
खंड 1 : अध्ययन
1. प्रस्तावना : कंप्यूटर और इंटरनेट से बना नया मीडिया
2. कंप्यूटर, इंटरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब का संक्षिप्त इतिहास
3. मोबाइल मीडिया
4. नया मीडिया और भारत
5. सोशल मीडिया और चुनाव
6. क्या है सोशल मीडिया की सामाजिकता
7. मीडिया भूमंडलीकरण और नया मीडिया
खंड 2 : अभ्यास
8. जनसंचार, नया मीडिया और पत्रकारिता का इंटरनेट मॉडल
9. नए मीडिया की विशेषताएं
10. नए मीडिया में संवादात्मकता यानी इंटरेक्टिविटी
11. वेब 2.0, नया इंटरनेट और ब्लॉगोस्फीयर
12. नया मीडिया : नुकसान और निहितार्थ
13. नया मीडिया : उसूल, आचार और कानून
14. नए मीडिया का भविष्य इंटरनेट-2 और वेब 3.0
15. नया मीडिया संवाद
16. नया मीडिया : चुनिंदा शब्दावली
विस्तृत अध्ययन सामग्री
नोट्स
संदर्भ सूची
आभार
पेंगुइन को फॉलो करें
सर्वाधिकार
पेंगुइन बुक्स
नया मीडिया : अध्ययन और अभ्यास
शालिनी जोशी ने भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से पत्रकारिता में पोस्टग्रेजुएट डिप्लोमा के बाद जीटीवी से अपने पत्रकारीय करियर की शुरुआत की।बीबीसी के लंदन और दिल्ली स्थित कार्यालयों में बतौर प्रोडयूसर काम किया।टीवी चैनल आजतक की उत्तराखंड ब्यूरो हेड रहीं। दूरदर्शन पर भी वो एकविशेष कार्यक्रम की एंकर रही हैं। उत्तराखंड में बीबीसी संवाददाता के रूप मेंभी करीब दस वर्ष तक कार्य।
शिवप्रसाद जोशी फिलहाल बीबीसी वर्ल्ड सर्विस और वेब सेवा से संबद्ध हैं।दून यूनिवर्सिटी के जनसंचार विभाग में विजिटिंग फैकल्टी रहे। जनसंचार मेंपीएचडी भी कर रहे हैं। जर्मन रेडियो, डॉयचे वेले की हिंदी सेवा के नियमितब्लॉगर।
भूमिका
नए मीडिया का ताना-बाना
“हम नहीं जानते कि पानी की खोज किसने की लेकिन इतना ज़रूर जानते हैं कि वो मछली नहीं थी।” कनाडा के मीडिया चिंतक और प्रोफ़ेसर मार्शल मैक्लुहान का ये कथन मीडिया के संदर्भ में है। तात्पर्य ये है कि आधुनिक जीवन इस कदर मीडिया संचालित हो चुका है कि हमें इसका आभास ही नहीं हो पाता है ये किस तरह और कितनी गहनता से जीवन के हर पक्ष को प्रभावित कर रहा है। ठीक वैसे ही जैसे कि एक मछली को अलग से पानी के अस्तित्व का अहसास नहीं होता है। मार्शल मैक्लुहान के इसी कथन से ये अंदाज़ा भी लगाया जा सकता है कि आज के मीडिया चालित युग में मीडिया अध्ययन की ज़रूरत कितनी अधिक है। ये अनिवार्य है कि मीडिया के विभिन्न रूपों और माध्यमों की कार्यप्रणाली के प्रति एक जागरूक दृष्टि विकसित हो और अख़बार, टेलीविज़न, रेडियो और नए मीडिया में प्रकाशित और प्रसारित किए जा रहे संदेशों और छवियों को सही संदर्भ और परिप्रेक्ष्य में समझा जाए।
आज हर मीडिया संगठन नए मीडिया पर अपनी प्रभावशाली उपस्थिति बनाने के लिए तमाम तरह के उपकरणों का इस्तेमाल कर रहा है जिसमें मुफ़्त सीधे प्रसारण के साथ-साथ कई तरह के लुभावने ऑफ़र भी हैं। यहां तक कि कई बड़े मीडिया संगठनों ने अपनी रेडियो और टेलीविज़न सेवाओं को दरकिनार कर पूरा ज़ोर ऑनलाइन पर झोंक दिया है। इसका एक हाल का उदाहरण है बीबीसी न्यूज़ के डायरेक्टर जेम्स हार्डिंग की घोषणा जिसमें उन्होंने कहा कि 415 नौकरियां ख़त्म की जाएंगी क्योंकि ख़र्च कम करने के लिए ये फ़ैसला ज़रूरी है। उनके अनुसार बीबीसी ने ये क़दम 80 करोड़ पाउंड बचाने की योजना के तहत उठाया है। बीबीसी का ख़र्च टीवी लाइस.स फ़ीस से आता है और लाइस.स फ़ीस में बढ़ोतरी पर 2010 में रोक लगा दी गई थी। लेकिन उन्होंने 195 नए पद भरने की भी घोषणा की। जेम्स हार्डिंग ने बीबीसी के न्यूज़ डिवीज़न के ढांचे को बदलने की बात कही और नई तकनीक की मदद से डिजिटल युग में ख़बरें पेश करने की योजनाएं भी रखीं। उनका कहना था कि डिजिटल पत्रकारिता की इन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 195 नए पद बनाए जाएंगे। अर्थात एक ओर परंपरागत मीडिया विभाग में कटौती वहीं दूसरी ओर नए मीडिया विभाग का विस्तार।
अगर 2012 को सोशल मीडिया की ताक़त की खोज का वर्ष कहा जाए तो 2013 का साल वो समय है जब मुख्यधारा की मार्केटिंग और विज्ञापन के लिए भी नए मीडिया की शक्ति को पहचाना गया। 2012 में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद बराक ओबामा ने अपनी पत्नी मिशेल ओबामा को गले लगाती हुई अपनी तस्वीर फ़ेसबुक पर पोस्ट की तो उसे 40 लाख लोगों ने पसंद किया जिसने उस समय फ़ेसबुक पर सबसे ज़्यादा देखी गई फ़ोटो का रिकॉर्ड बनाया था। दक्षिण कोरियाई गायक और रैपर साई के हिट ‘गंगनम स्टाइल’ का वीडियो यूटयूब के इतिहास में एक अरब से ज़्यादा लोगों द्वारा देखा गया और पोप बेनेडिक्ट 16वीं के ट्वीट्स चर्चा का केंद्र रहे। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ये कुछ यादगार लम्हे थे जिन्होंने सोशल मीडिया की ताक़त और आकर्षण से लोगों को अचंभित कर दिया।
परंपरागत मीडिया के ज़रिए प्रचार करना या जागरूकता बढ़ाना हमेशा ही चुनौतीपूर्ण और अत्यंत मंहगा रहा है लेकिन सोशल मीडिया ने बेशुमार अवसर प्रदान किए हैं जिनमें एक क्लिक से हज़ारों-हज़ार संभावित उपभोक्ताओं से संपर्क स्थापित किया जा सकता है। परंपरागत मीडिया पर होनेवाले खर्च के एकांश से भी कम खर्च में स्टारबक्स, मैक्डोनाल्ड और डव कुछ ऐसे ब्रांड हैं जिन्होंने ख़ूब मुनाफ़ा कमाया और जगह बनाई। स्टारबक्स ने 2009 में फ्री पेस्ट्री स्कीमशुरू की जो 2013 में कई और ऑफ़र और डील के साथ उत्तरोत्तर बढ़ती गई। 7 जून को बैंगलुरू में एक लोकल कीमत ऑफ़र को 13,931 लोगों ने अपने फ़ेसबुक वॉल पर शेयर किया और 1,553 कमेंट्स मिले। डव ने महिलाओं की स्वयं अपने प्रति अवधारणा को लेकर प्रोमोशनल फ़िल्म बनाई जो 25 भाषाओं में यूट्यूब पर अपलोड की गई और इसे 1140 लाख लोगों ने देखा।
सोशल मीडिया एक अनूठा संचार प्लेटफॉर्म है जो ”प्रोपेगेशन थ्रो रेप्लिकेशन“ करता है यानी जो किसी चीज़ का प्रचार करने के साथ-साथ उसकी नकल को भी बढ़ावा देता है। इसका ज्वलंत उदाहरण रहा साई का वीडियो जिसके रिलीज़ और हिट होने के बाद उसके समान और उसके हूबहू तर्ज पर बनाए गए वीडियो की बाढ़ आ गई। इनमें से एक अमेरिकी नौसैनिक अकादमी का वीडियो भी था जिसे उसी अकादमी के लाखों लोगों ने देखा और इससे साई के मूल वीडियो का भी समांतर प्रचार प्रसार चलता रहा। इसे “click of mouse propagation” भी कहा जाता है यानी एक क्लिक और साइबर संसार में लाखों से संवाद।
अमेरिकी रिसर्च फ़र्म, ई मार्केटर के अनुसार भारत में 2013 में सोशलमीडिया के उपयोग में 37 फ़ीसदी बढ़ोत्तरी हुई। ऐसी ही गति आगे भी रहेगी और माना जाता है कि 2016 तक विश्व में सोशल मीडिया यूजर्स की सबसेबड़ी आबादी भारत में होगी। बंगलुरू में जुलाई 2014 को हुई एक कॉन्फ्रेंस में जारी की गई इस रिपोर्ट के आंकड़े नए मीडिया के अध्ययन के लिहाज से बड़े दिलचस्प हैं। अमेरिका के बाहर फ़ेसबुक के यूजर्स की संख्या में भारतदूसरे नंबर पर है। ये कॉन्फ्रेंस ‘सोशल मीडिया मार्केट इन इमर्जिंग मार्केट्स’विषय पर हुई थी। इस कॉन्फ्रेंस का आयोजन एलएन वेलिंगकर इंस्टीटयूट ऑफ़ मैनेजमेंट डेवलपमेंट ऐंड रिसर्च ने एकेडमी ऑफ़ इंडिया मार्केटिंग ऐंड आईडीजी मीडिया के सहयोग से किया था। इसमें दुनिया भर के 300 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसी सम्मेलन में इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट भी रखी गई जिसके अनुसार 2013 में सात करोड़ 80 लाख भारतीय फ़ेसबुक पर सक्रिय थे जो कि 2012 की तुलना में नेटीज़ंस में क़रीब 50 फ़ीसदी वृद्धि को दर्शाता है। इसी तरह से ट्विटर पर तीन करोड़ से कुछ ज़्यादा और लिंक्डइन पर दो करोड़ भारतीय सक्रिय हैं। कॉरपोरेट मैनेजरों और प्रबंधन विशेषज्ञों ने कॉन्फ्रेंस में इस बात पर मंथन किया कि आभासी संसार में किस तरह के तौर-तरीक़े अपनाकर ब्रांडिंग की जा सकती है और उत्पाद और सेवाओं को बढ़ावा दिया जा सकता है।
हालांकि चिकित्सक और मनोविज्ञानी, युवा पीढ़ी में सोशल मीडिया की लत को लेकर आगाह कर रहे हैं लेकिन सच्चाई ये है कि एक तबका इससे नाक-भौं सिकोड़े, इसकी संरचना में अच्छाइयां भी दर्ज हैं और कई अत्यंत महत्त्वपूर्ण विमर्श यहां होते रहते हैं। लोग अब सिर्फ़ पैसे कमाने के लिए ही काम नहीं करना चाहते बल्कि उसका उद्देश्य भी ढूंढते हैं और सोशल मीडिया उनकी इस तलाश में मददगार है।
मार्शल मैक्लुहान ने अपनी प्रसिद्ध किताब मीडियम इज़ द मैसेज में जिस अवधारणा की विवेचना की वो एक तरह से इलेक्ट्रॉनिक कल्चर के आगमन की भविष्यवाणी थी। उन्होंने कहा कि नॉन वर्बल इंस्टैंट कम्युनिकेशन ने भाषा की जगह ले ली।
भारत में 2014 के लोकसभा चुनावों की लड़ाई में 140 कैरेक्टर का ट्विटर भी विजयी हुआ और आज कोई भी वार्तालाप शायद ही इन सवालों के बिना पूरा होता है: टॉप ट्रेंड क्या है, दिन का सबसे लोकप्रिय ट्वीट क्या है, वायरल वीडियो, ऑनलाइन सेनाएं, नकारात्मक और सकारात्मक संदेशों की चर्चा। ये हैशटैग वॉर है जिसमें कोई पिछड़ना नहीं चाहता।
2014 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने प्रधानमंत्री के माइक्रोब्लॉगिंग मिशन के तहत क.द्रीय मंत्रियों के बीच एक सूची बांटी है जिसमें ट्विटर पर सबसे लोकप्रिय मंत्रियों के नाम हैं। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्विटर अकाउंट, @नरेंद्र मोदी सबसे आगे है जिसके 82 लाख फ़ॉलोवर हैं, दूसरे नंबर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हैं जिनके 15 लाख फ़ॉलोवर हैं। रक्षा और वित्त मंत्री अरुण जेटली, स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह के फ़ॉलोवर दो लाख से सात लाख की रेंज में हैं। मंत्रियों को इस बारे में दिशा निर्देश जारी किए गए हैं कि वो कैसे अपनी और अपने काम की छवि को सोशल साइट्स पर चमका सकते हैं। नरेंद्र मोदी लगातार ट्वीट करते हैं, अपनी गतिविधियों के बारे में बताते हैं, यहां तक कि उन्होंने अपनी जापान यात्रा के बारे में जापानी भाषा में ट्वीट किया। उधर हर्षवर्धन यौन शिक्षा पर अपने ट्वीट से विवादों में फंसे तो स्मृति ईरानी को उनकी कथित येल डिग्री पर लोगों ने घेर ही लिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की दिवंगत पत्नी सुनंदा पुष्कर ने अपने दांपत्य जीवन के असंतोष को ट्विटर पर साझा किया।
कई मौकों पर सांप्रदायिक विद्वेष बढ़ाने और दूसरे विवादों को जन्म देने में भी सोशल मीडिया आगे रहा। 24 घंटे के टेलीविज़न चैनलों के लिए ये ख़बरों का स्त्रोत बन गया है, किसी मुद्दे पर किसी नेता की प्रतिक्रिया जाननी हो, किसी सेलीब्रेटी की राय देखनी हो, भारत रत्न या टीम इंडिया की जीत के मसले पर राय पता करनी हो तो उसका ट्विटर और फ़ेसबुक अपडेट देखिए। हेडलाइन इस तरह से भी बन रही हैं।
माना जाता है कि शिक्षण संस्थानों में दाखिले की प्रक्रिया में सोशल मीडियाऔर इंटरनेट की महत्त्वपूर्ण भूमिका है और करीब 80 प्रतिशत दाखिले इससे प्रभावित होते हैं। इसलिए ऑनलाइन पर्सनैलिटी प्रमोशन मार्क.टिंग का एक प्रभावशाली माध्यम है। सोशल मीडिया ने मार्केटिंग लैंडस्केप को बदल दिया है। लोग अब किसी उत्पाद को ख़रीदने या किसी सेवा का उपभोग करने के पहले फ़ेसबुक और इंटरनेट पर उसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं। इसलिए अगर कोई शिकायत आती है तो वो जंगल की आग की तरह फैल सकती है जो कि किसी उत्पाद के लिए घातक हो सकती है।
अमेरिका की मशहूर समाचार और विचार वेबसाइट हफिंग्टन पोस्ट ने अपना भारतीय संस्करण शुरू करने के लिए टाइम्स ऑफ़ इंडिया के साथ करार किया है। इसकी प्रतिस्पर्धा फ़र्स्ट पोस्ट और स्क्रॉल के साथ होगी। अंग्रेज़ी बोलनेवालों की संख्या के लिहाज़ से भारत का दुनिया भर में दूसरा नंबर है और यहां दुनिया की तीसरी (जल्द ही दूसरी) सबसे बड़ी इंटरनेट आबादी है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया का दावा है कि टाइम्स ग्रुप की डिजिटल शाखा टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड के 10 करोड़ विज़िटर हैं और वेब और मोबाइल पर इसके दो अरब पेजव्यू हैं जिनमें मनोरंजन, बिजनेस, खेल, ई-कॉमर्स, क्लासीफाइड, सिनेमा, स्टार्ट अप निवेश और स्थान