178
pages
English
Ebooks
2004
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Publié par
Date de parution
04 mars 2004
Nombre de lectures
0
EAN13
9789352140527
Langue
English
पंकज दुबे
इश्कियापा
अनुक्रम
लेखक के बारे में
पेंगुइन द्वारा प्रकाशित लेखक की और किताबें
पूर्वकथन
112 दिन पहले...
अध्याय एक
अध्याय दो
अध्याय तीन
अध्याय चार
अध्याय पांच
अध्याय छह
अध्याय सात
अध्याय आठ
अध्याय नौ
अध्याय दस
अध्याय ग्यारह
अध्याय बारह
अध्याय तेरह
अध्याय चैदह
अध्याय पंद्रह
अध्याय सत्राह
अध्याय सत्राह
अध्याय अठारह
अध्याय उन्नीस
अध्याय बीस
अध्याय इक्कीस
अध्याय बाईस
अध्याय तेईस
अध्याय चैबीस
अध्याय पच्चीस
अध्याय छब्बीस
अध्याय सत्ताइस
अध्याय अठाइस
अध्याय उनतीस
अध्याय तीस
अध्याय इकतीस
अध्याय बत्तीस
अध्याय तैंतीस
अध्याय चैंतीस
अध्याय पैंतीस
अध्यास छत्तीस
अध्याय सैंतीस
अध्याय अड़तीस
अध्याय उनतालीस
अध्याय चालीस
अध्याय इकतालीस
अध्याय बयालीस
अध्याय तैंतालीस
अध्याय चवालीस
अध्याय पैंतालीस
अध्याय छियालीस
अध्याय सैंतालीस
अध्याय अड़तालीस
अध्याय उनचास
अध्याय पचास
अध्याय इक्यावन
अध्यास बावन
अध्याय तिरेपन
अध्याय चैवन
अध्याय पचपन
अध्याय छप्पन
अध्याय सत्तावन
अध्याय अट्ठावन
अध्याय उनसठ
अध्याय साठ
अध्याय इकसठ
अध्याय बासठ
अध्याय तिरेसठ
अध्याय चैंसठ
अध्याय पैंसठ
अध्याय छियासठ
अध्याय सड़सठ
अध्याय अड़सठ
अध्याय उनहत्तर
अध्याय सत्तर
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पेंगुइन को फॉलो करें
सर्वाधिकार
पेंगुइन बुक्स
इश्कियापा
पंकज दुबे: चाईबासा, थोड़ा सोया सा, थोड़ा खोया सा शहर। झारखंड के इसी शहर में बड़ा हो रहा था पंकज दुबे। अपने नाम से नाखुश। उसे लगता था कि उसके मां बाप ने उसका नाम बस अपनी ड्यूटी पूरी करने के लिए रख दिया था। नाम बहुत आॅर्डिनरी लगता था इसलिए वो अपनी जि़ंदगी में सब कुछ एक्स्ट्रा आॅर्डिनरी करना चाहता था!
एक बार उसने अपनी पहली गर्लफ्रेंड की मां को इंप्रेस करने के लिए वहां के सब्ज़ी बाजार ‘मंगलाहाट’ से एक झोला नींबू खरीदकर गिफ्ट कर दिया। मां ने अचार बनाया और गर्लफ्रंेड ने विचार बनाया। विचार था ‘ब्रेकअप’ का। बचपन में उसका ज़्यादा वक़्त मिथुन की ब्रेक डांस स्टेप्स की नकल करने मेें बीता। स्कूल में डिबेटिंग का हीरो था लेकिन आर्यभट्ट के आशीर्वाद से मैथ्स में बिलकुल ज़ीरो था।
वास्कोडिगामा बनने के लिए हायर स्टडी की याद आने पर पहले दिल्ली पहुंचा, ग्रेजुएशन के लिए और फिर लंदन मास्टर्स के नाम पर।
कभी वो दिल्ली के मुखर्जी नगर के एक सडि़यल फ्लैट में अपने चार आईएएस एस्पिरेंट दोस्तों के साथ रहा तो कभी इंगलैंड में पेशे से एक टाॅयलेट क्लीनर मकान मालकिन के घर का पेइंग गेस्ट बना।
बीबीसी में पहली नौकरी मिली। खबर पढ़ने के दौरान, वो अपना मोबाइल फोन बंद करना भूल गया। न्यूज़ के बदले पूरी दुनिया ने उसका रिंगटोन सुना ‘साथिया, साथिया, मद्धम मद्धम सी है तेरी हंसी।’
दिल्ली सरकार की हिंदी अकादमी ने उसकी कहानी ‘मुखौटा’ के लिए उसे ‘नवोदित लेखक अवाॅर्ड’ दिया, जिसे आज भी उसकी सास ने घर के शोकेस में लगाकर रखा है।
अराइव करने से ज़्यादा उसे ट्रैवल करना पसंद है। अभी फिलहाल उसका डेस्टिनेशन है ‘मुंबई’ जहां टीवी और फिल्म राइटिंग में वो अपने एक्सपेरिमेंट्स कर रहा है।
ये नाॅवेल भी उन एक्सपेरिमेंट्स का हिस्सा हो ना हो किस्सा ज़रूर है।
पंकज दुबे की पेंगुइन द्वारा हिंदी में प्रकाशित अन्य पुस्तकें
लूज़र कहीं का!
पूर्वकथन
‘बाबू... मैं तुम्हंे चबाना चाहती हूं,’ उसने कहा।
वो स्वीटी थी, उसके होंठ मैजेंटा रेड थे।
स्वीटी ने उसे चंदन की खुशबू से महकती अपनी बांहों में भर रखा था। वो मैसूर के चंदन के साबुन का रोज इस्तेमाल करती थी, खुशबू बरकरार रखने के लिए। वो इस खुशबू को काफी पसंद करता था लेकिन आज उसी खुशबू में उसका दम घुट रहा था। स्वीटी उसकी शर्ट के बटन खोल रही थी फिर भी वो उसे धक्का देकर दूर कर देना चाहता था।
‘तुम डर क्यों रहे हो, क्या बात है?’ स्वीटी ने उसकी आंखों में सच ढूंढ़ते हुए कहा।
‘कम आॅन,’ उसने खुद को ढंकते हुए उसकी आंखों को किस करने की कोशिश की।
स्वीटी को ऐसे मासूम लव शाॅट्स नहीं, तूफानी किस्म की मुहब्बत की चाहत थी।
‘मुझे अपनी चेस्ट किस करने दो। दुनिया को पता चल जाने दो कि बाबू मेरी प्राॅपर्टी है,’ अपनी बांहों को उसकी कमर पर कसते हुए और उसकी शर्ट का बटन खोलते हुए स्वीटी ने एक सांस में कहा।
उसने स्वीटी को नीचे गिरा दिया, उसके ऊपर चढ़ गया और अपनी ट्राउजर खोल दी। जींस के अंदर से झांकता उसके जाॅकी का बैंड दूध की तरह सफेद था।
‘तुम्हारा अंडरवियर बदल गया है। तुम भी बदल गए हो। बाबू तुम कुछ छिपा रहे हो ना,’ हल्के विरोध के बीच स्वीटी ने कहा।
उसने अपने बडे़ होंठ उसकी लिप्स पर लगा दिए। उसकी लिप्स बर्फ
की तरह ठंडी थी। दोनों ने एक दूसरे की हथेलियां भींच लीं। स्वीटी उसकी हथेली के पसीने की एक एक बूंद से उसकी टेंशन भांप रही थी।
स्वीटी ने उसे पीठ से पकड़ा और पानी की लहरों की तरह उसके ऊपर आ गई। इस वक्त स्वीटी उसके ऊपर थी।
वैनिटी वैन में बड़े मिरर के चारों तरफ की लाइट उनके चेहरे पर गिर रही थी। उसकी स्किन चांद की दूधिया रोशनी की तरफ सफेद थी। स्वीटी ने उसके पूरे चेहरे को किस किया और उसकी शर्ट के बटन खोलने लगी।
‘तुम मुझे अपनी शर्ट के बटन क्यों नहीं खोलने दे रहे। तुम इतना अजीब बर्ताव क्यों कर रहे हो बाबू। तुम्हें क्या हो गया है,’ उसके विरोध से स्वीटी का शक बढ़ता गया। अब उसे पक्का यकीन हो गया कि कोई बात ज रूर है।
स्वीटी ने कसकर उसकी शर्ट पकड़ ली और तेज ी से बटन खोलने लगी। ‘थोड़ा खिंचाव है। ये जिम भी ना। उहहहहहहह,’ बहाना बताने हुए उसने कहा।
‘तुम झूठ बोल रहे हो,’ स्वीटी ने सीधा हमला किया। ‘क्या मैं अपने बाबू से प्यार भी नहीं कर सकती? क्या इसके लिए मुझे परमिशन लेनी होगी?’ स्वीटी ने बेचैनी से कहा।
स्वीटी बहुत सेक्सी थी। उसकी सेक्स अपील उसकी चिन से छन छनकर टपकती थी। गुस्से में उसकी सेक्स अपील में बढ़ोतरी हो जाती थी।
‘मार डालो मुझे। मेरी जींस उतार लो,’ ये रिक्वेस्ट थी या आदेश, इस बारे में वो भी श्योर नहीं था।
स्वीटी उसे घूर रही थी।
‘आगे बढ़ो। मेरी जींस उतार दो।’ उसके शब्दों ने स्वीटी को हिला दिया। उसकी आवाज कांप रही थी।
स्वीटी ने उसकी आंखों में झांका। उसकी आंखें लाइट ब्राउन थीं। कहा जाता है कि लाइट ब्राउन आंखों वाले के साथ डेटिंग काफी रिस्की होती है। स्वीटी ने अब तक सिर्फ वही किया था जो रिस्की था।
वो पीछे हट गई। उसने अपनी बांहें उसके पीछे से हटा लीं। वैनिटी वैन में रखे एक छोटे से तकिए से उस लड़के ने अपना सिर एडजस्ट किया। वो जानता था कि स्वीटी उसकी जींस उतार देगी और उसे प्लेजर में भिगो देगी।
स्वीटी ने उसके बटन बंद कर दिए। उसने भी आसानी से सरेंडर कर दिया। चंद सेकेंड में उसने उसे शर्ट पहना दी। वो जानती थी कि उस शर्ट के अंदर कुछ छिपा है। फिर एकदम से अचानक स्वीटी किसी खतरनाक चींटें की तरह उछली और उसने उसकी पूरी शर्ट फाड़ दी। उसकी नजर उसके सीने पर पड़ी।
वो चैंकी। चैंकी और निश्शब्द हो गई।
उसकी सीने पर एक टैटू था। उसमें नाम गुदा था। वो नाम एक लड़की का था। वो लड़की स्वीटी नहीं थी।
वो अनु थी। टैटू एकदम ताज ा था। टैटू की वजह से स्किन हरी थी, ज ख़्म लाली भरा था।
उसकी लाइफ में एक और लड़की है। स्वीटी ने उसकी नाक पर ज ोर से एक मुक्का मारा। नाक पर मुक्का पड़ने से पूरा शरीर हिल जाता है और काफी तकलीफ देता है। इस मुक्के से उसे गहरी चोट लगी और खून बहने लगा।
उसने स्वीटी से एक्सप्लेन करना चाहा लेकिन स्वीटी उससे दूर हो गई। स्वीटी को गहरा धक्का लगा था। स्वीटी उससे बहुत प्यार करती थी। शायद नफरत भी। दोनों इमोशन आंसू की शक्ल में बाहर निकल रहे थे। वैनिटी वैन के बाहर खड़े लड़के और लड़कियों को लग रहा था कि अंदर स्टीमी सीन्स चल रहे हैं। तभी अचानक धमाके के साथ दरवाज ा खुला। सभी के सिर आवाज की तरफ घूम गए। मिसाइल की तरह एक के बाद एक, दो जूते बाहर निकले। उड़ते हुए। बाहर खड़े क्रू मेंबर्स उस ड्रामेटिक सीन को मिस नहीं करना चाहते थे जो शूट का हिस्सा नहीं था। उनके लिए यह टोटल पैसा वसूल था।
स्वीटी वैनिटी वैन से बाहर निकली। उसके होंठों पर मैजेंटा लिपस्टिक थी। वह बहुत गुस्से में थी। ऐसा लग रहा था कि वह किसी एक्शन फिल्म में कोई रोल प्ले कर रही है। उसकी चाल दबंग के चुलबुल पांडे की याद दिला रही थी। वह गुस्से में दमक रही थी।
दो अलग अलग संसार हिल गए थे। लेकिन 112 दिन पहले चीज ें ऐसी नहीं थीं।
112 दिन पहले...
अध्याय एक
‘आशुतोष को चेन से बांधने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई,’ उसने उसकी बाईं गाल पर तमाचा रसीद करते हुए कहा। उसकी दाईं गाल भी सूजी हुई और लाल थी। स्वीटी का दूसरा तमाचा उसके चेहरे के कलर काॅन्ट्रास्ट को बैलेंस कर रहा था। उसके दोनों गाल अब बराबर लाल थे।
बंगले का वह सबसे आज्ञाकारी और नया नौकर था। बंगले में रहने और सरवाइव करने के लिए स्वीटी का क्रैश कोर्स करना उसके लिए बाकी था।
‘स्वीटी बेबी वह खतरनाक है,’ आधा चूहा और आधा कबूतर दिखने वाले नौकर ने तपाक से कहा।
रवि, सूरज, श्रीकांत, चेतन, सोमेश, प्रशांत और आशुतोष को स्वीटी ने आवाज लगाई।
अलग अलग किस्मों की खूंखार नस्लों के कुत्तों ने स्वीटी को घेर लिया और उसे चाटने लगे। स्वीटी इन्हीं के साथ रहती थी। ये पुरुष नहीं, कुत्ते थे। ब्रेक अप होने के बाद स्वीटी अपने हर ब्राॅयफ्रेंड के नाम का कुत्ता पाल लेती है। इस तरह स्वीटी डाॅबरमैन, अलसेशियंस, जर्मन शेफर्ड जैसे कुत्तों की नस्लों के बीच घिरी हुई थी।
स्वीटी के स्कूल में पढ़ाई के दौरान सात ब्राॅयफ्रेंड बदल दिए थे। वह लड़कों को कुत्ता समझती थी। स्वीटी पहले ब्राॅयफ्रेंड चुनती थी फिर बेइज़्जत कर उन्हें बदल देती थी। उसके भव्य बंगले में सात कुत्ते थे।
जिस बंगले में स्वीटी रहती थी, उसकी भव्यता देखते ही बनती थी।
इसमें कुछ भी नेचुरल नहीं था। इसकी दीवारें काफी चमकदार थीं। ट्यूबलाइट से लेकर पंखे तक ब्लैकमनी की देन। एक भी सीलिंग फैन सादा नहीं था। सभी में मुग़लकालीन कारीगरी की गई थी। ये अस्सी के दशक की हिंदी फिल्मों की याद दिलाते थे। डाइनिंग टेबल और उसके चारों ओर रखी कुर्सियां सफेद संगमरमर के बने थे।
स्वीटी के फादर काली पांडे खुद को किसी शहंशाह से कम नहीं समझते थे। वे बिहार के मोतिहारी से पांच बार एमएलए चुने गए थे और पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर थे।
अपने राक्षसी बर्ताव पर उन्हें कभी शर्मिंदगी नहीं हुई। वो पिछले दो दशकों से बिहार में किडनैपिंग माफियाओं के बेताज बादशाह थे। वो बड़े बड़े किडनैपिंग मामलों में शामिल थे। इलाके में उनकी दहशत थी। बिज नेस करने वालों में उनका खौफ था। डाॅक्टर और इंजीनियरों ने अपने बच्चों को काली पांडे का टारगेट बनने से बचाने के लिए दूसरी जगह भेजना शुरू कर दिया था। ये वो दौर था जब बिहार पर माफियाओं का राज था। इस दौर में क्राइम ने आर्गनाइज़्ड रूप अख्तियार कर लिया था। पढ़ा-लिखा और कानून में आस्था रखने वाला तबका राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतिकरण से डरा हुआ था।
एक दिन प्राचीन मगध के राजा अशोक की तरह काली पांडे का हृदय परिवर्तन हुआ और उन्होंने असेंबली चुनाव लड़ने का फैसला किया। कुख्यात अपराधी मंत्राी बनना चाहता था। भाग्य को भी काली पांडे के आगे झुकना पड़ा।
जिस तरह एनर्जी के जीन नष्ट और पैदा नहीं किए जा सकते, इनका केवल रूप बदलता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ये ट्रांस्फर होते हैं। वे केवल अपनी फाॅर्म बदलते हैं। काली पांडे की एनर्जी और जीन उनकी बेटी स्वीटी में ट्रांस्फर हो गई थी। स्वीटी उसके परिवार की एकमात्रा उत्तराधिकारी थी। स्वीटी जब तीन साल की थी, तभी उसकी मां चल बसी थी।
बिना मां की बेटी बेलगाम लहर की तरह होती है जिसे कभी भी प्रेडिक्ट नहीं किया जा सकता। स्वीटी वैसी ही थी।
‘आज से अगर किसी ने भी मेरे बच्चों को ज ंजीर में बांधने की कोशिश, तो उसे ही ज ंजीर में बांध दिया जाएगा।’
‘मैं इसका ध्यान रखूंगा,’ भयभीत नौकर ने मांफी मांगी।
‘फायदे में रहोगे।’ तानाश