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pages
Hindi
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2022
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Publié par
Date de parution
30 juin 2022
Nombre de lectures
5
EAN13
9789354922749
Langue
Hindi
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Date de parution
30 juin 2022
EAN13
9789354922749
Langue
Hindi
हिन्द पॉकेट बुक्स
कैदी नं. 100
10 जून, 1955 को मेरठ में जन्मे वेद प्रकाश शर्मा हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार थे। उनके पिता पं. मिश्रीलाल शर्मा मूलत: बुलंदशहर के रहने वाले थे। वेद प्रकाश एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे हैं। एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी मृत्यु हो गई। 1962 में बड़े भाई की मौत हुई और उसी साल इतनी बारिश हुई कि किराए का मकान टूट गया। फिर एक बीमारी की वजह से पिता ने खाट पकड़ ली। घर में कोई कमाने वाला नहीं था, इसलिए सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई। मां के संघर्ष से इन्हें लेखन की प्रेरणा मिली और फिर देखते ही देखते एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखते चले गए।
वेद प्रकाश शर्मा के 176 उपन्यास प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त इन्होंने खिलाड़ी श्रृंखला की फिल्मों की पटकथाएं भी लिखी। वर्दी वाला गुंडा वेद प्रकाश शर्मा का सफलतम थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की आज तक करोड़ों प्रतियां बिक चुकी हैं। भारत में जनसाधारण में लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों की दुनिया में यह उपन्यास सुपर स्टार का दर्जा रखता है।
हिन्द पॉकेट बुक्स से प्रकाशित
लेखक की अन्य पुस्तकें
वर्दी वाला गुण्डा सुहाग से बड़ा सुपरस्टार चक्रव्यूह पैंतरा खेल गया खेल सभी दीवाने दौलत के बहु मांगे इंसाफ़ कारीगर साढ़े तीन घंटे हत्या एक सुहागिन की
वेद प्रकाश शर्मा
कैदी नं 100
विषयक्रम
कैदी नं 100
फॉलो पेंगुइन
कॉपीराइट
कैदी नं 100
ट्यूब के दूधिया प्रकाश से जगमगाता लंबा चौड़ा हॉल।
बुरी तरह चमचमा रही एक विशाल गोल मेज के चारों तरफ विश्व के चुनिंदा वैज्ञानिक विराजमान थे। प्रत्येक राष्ट्र से वहां का नंबर वन वैज्ञानिक इस कांफ्रेन्स में भाग लेने भारत आया था।
अध्यक्षता रूसी वैज्ञानिक मिस्टर आंद्रोपोव कर रहे थे। अभी अध्यक्षीय भाषण शुरू हुए दस मिनट ही गुजरे थे कि बिल्कुल अप्रत्याशित ढंग से हॉल का दरवाज़ा खुला।
सभी वैज्ञानिकों की दृष्टि उस तरफ उठ गई। आंद्रोपोव का मुंह खुला-का-खुला रह गया।
डोर क्लोजर’ के कारण दरवाज़ा स्वतः बंद हो गया, परंतु दरवाज़े के समीप, हॉल में एक बीस वर्षीय लड़की खड़ी नज़र आ रही थी। जहां वे सब उस लड़की के इस हॉल में प्रवेश पर चकित थे, वहीं लड़की के सौदर्य ने उन्हें स्तब्ध कर दिया!
वह मुस्कुरा रही थी।
गुलाब की पंखुड़ियों से पतले-पतले अधरों पर नृत्य करती मुस्कान बड़ी ही प्यारी लग रही थी। गोल मुखड़े, नीली आंखें और हंस जैसे रंग वाली इस लड़की के बाल घने, लंबे एवं काले थे।
“कौन हो तुम?” अमेरिकी वैज्ञानिक ने पूछा।
“संगीता!”
एक पल को सभी चकरा गए, फिर चीनी वैज्ञानिक ने सवाल किया–“कौन संगीता?”
“मैं विज्ञान की छात्रा हूं, एमएससी में पढ़ती हूं।”
“तुम यहां कैसे घुस आई, क्या बाहर कोई पहरा नहीं है?”
“पहरा है और बहुत कड़ा पहरा है, ऐसा कि मिलिट्री के जवानों की नज़र बचाकर कोई परिंदा भी इस हॉल में पर नहीं मार सकता और हो भी क्यों नहीं?” अजीब मुस्कान के साथ संगीता कहती चली जा रही थी–“आखिर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक इस हॉल में जमा हैं, सुरक्षा के कड़े इंतजाम होने तो स्वाभाविक हैं।”
"फिर तुम यहां कैसे पहुंच गई?”
“इस सवाल को छोड़िए, यह पूछिए कि मैं यहां क्यों आई हूं?”
जर्मन के गणितज्ञ ने पूछा “क्यों आई हो?”
“आप लोगों की इस कांफ्रेन्स में भाग लूंगी?”
अमेरिकी वैज्ञानिक कह उठा–“तम तो अभी सिर्फ एमएससी की छात्रा हो मिस संगीता तुम्हें यह मालूम होना चाहिए कि यह कांफ्रेन्स विश्व के सिर्फ नंबर वन वैज्ञानिकों की है, किसी मुल्क का नंबर टू
वैज्ञानिक भी इसमें भाग नहीं ले सकता!”
“मैं फिर भी आई हूं।”
“क्या सोचकर आ गई हो?”
“आप सबको चकित कर देने के लिए।” उसने पूरी दृढ़ता के साथ कहा—“यह प्रमाणित करने के लिए कि विज्ञान की दुनिया को जो कुछ आज तक नंबर वन कहे जाने वाले वैज्ञानिक नहीं दे सके, वह मैं दे सकती हूं। सिर्फ एमएससी की छात्रा।”
पाकिस्तानी वैज्ञानिक ने कहा— यह कोई पागल लड़की लगती है और जाने कैसे हमारा कीमती वक्त बर्बाद करने घुस आई है, हमें गार्ड्स को बुलाकर इसे बाहर ...।”
“ठहरो!” मिस्टर आंद्रोपोव ने हाथ उठाकर कहा। पाकिस्तानी वैज्ञानिक को अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ देना पड़ा, संगीता पर दृष्टि टिकाए मिस्टर आंद्रोपोव बोले- क्या कहना चाहती हो बेटी, विज्ञान की दुनिया को क्या दे सकती हो तुम?”
“एक आविष्कार!”
“क्या और किस संबध में?”
“अगर आप दस मिनट का समय दें तो मैं अपने आविष्कार के बारे
में बता सकती हं बल्कि अगर यह कहं कि अपना आविष्कार आप लोगों को दिखाना चाहूंगी तब भी, अतिशयोक्ति नहीं होगी।
“हम तुम्हें दस मिनट देते हैं!”
“थैक्यू!” कहते वक्त संगीता के मुखड़े पर ऐसी आभा उभर आई, जैसी केवल देवियों के चेहरे पर ही देखी जा सकती है। फिर बाएं हाथ में दबे लाल रंग के एयरबैग को संभाले आंद्रोपोव की तरफ बढ़ी।
संगीता की चाल में दृढ़ता थी, आत्मविश्वास था।
जब उसने बोलना शुरू किया तो बोली “विज्ञान ने इतनी ज्यादा तरक्की कर ली है कि आज के युग को विज्ञान का युग कहा जाने लगा है और सच भी है, निःसंदेह हम बहुत आगे निकल आए हैं। हमने अणु और परमाणु बम बना लिए हैं, चांद-तारों तक का रास्ता नाप देते हैं हम आज हमारे सैकड़ों कत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष की कक्षाओं में परिक्रमा कर रहे हैं, उनमें ऐसे-ऐसे कैमरे फिट हैं कि करोड़ों किलोमीटर दूर से पृथ्वी पर रखे अखबार का ऐसा फोटो ले सकते हैं, जिसे आराम से पढ़ा जा सके। विज्ञान की उपलब्धियों को गिनवाया नहीं जा सकता, मगर फिर भी मैं यह कहूंगी कि जब हम अपने से बहुत दूर रखी वस्तु को देखने की कोशिश कर रहे होते हैं, तब अपने बहुत समीप रखी वस्तु को नहीं देख पाते!” आंद्रोपोव ने पूछा–“क्या कहना चाहती हो, बेटी?”
“सिर्फ यह अंकल कि इतनी उपलब्धियों के बावजूद भी हम अधूरे हैं, हमारे इर्द-गिर्द आज भी ऐसी सैकड़ों प्राकृतिक विपदाएं हैं, जिन पर विज्ञान काबू नहीं पा सका है। ऐसे सैकड़ों रोग हैं जिनका इलाज हम ढूंढ़ नहीं पाए हैं। इन प्राकृतिक विपदाओं और बीमारियों की तरफ क्या हमारा ध्यान है?”
“बाढ़, तूफान, समुद्र में उठते ज्वार-भाटे और फटते हुए ज्वालामुखी, जहां ऐसी प्राकृतिक विपदाएं हैं, जो हर वर्ष करोड़ों की जान-माल की हानि पहुंचाती हैं, वहीं कैंसर जैसे भयानक और असाध्य रोग भी हैं। इन सब पर हमारा, हमारे विज्ञान का कोई काबू नहीं है। बाढ़ और तफान को रोकने के लिए आविष्कार होने चाहिए, ज्वालामुखी को फटने से रोका जाना चाहिए और कैंसर जैसी अनेक घातक बीमारियों को रोकने के लिए दवाइयां ईजाद होनी चाहिए।”
“क्या तुमने कोई आविष्कार किया है?”
“मैंने ऐसे यंत्र का आविष्कार किया है, जो हमें किसी भी ज्वालामुखी के फूट पड़ने की पूर्व सूचना दे सकेगा!” ब्लेड की धार से भी कहीं ज्यादा पैना सन्नाटा छा गया वहां।
आंद्रोपोव समेत हर चेहरे पर हैरत के असीमित चिन्ह थे, वे यकीन नहीं कर पा रहे थे कि संगीता जो कुछ कह रही है, वह सच हो सकता है। क्या एमएससी की छात्रा सचमुच विज्ञान की दुनिया में ऐसा चमत्कार करके दिखा सकती है?
और दुनिया के चनिंदा वैज्ञानिकों को ऐसी अवस्था में देखकर संगीता फन से मुस्कुरा उठी, गौरववश गर्दन स्वयं ही तन गई। हॉल में काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा और संगीता वैज्ञानिकों की उपरोक्त अवस्था का आनंद लुटती रही।
एकाएक आंद्रोपोव ने पूछा “क्या तुम सच कह रही हो बेटी?”
“सोलह आने सच अंकल, मेरे यंत्र को वहां फिक्स कर दिया जाएगा, जहां जमीन के गर्भ में हमें ज्वालामुखी होने का शक हो और विभिन्न स्थानों पर रखे गए ऐसे यंत्रों का संबंध उनसे हजारों मील दर स्थित प्रयोगशाला से होगा तब, हम प्रयोगशाला में बैठे-बैठे ही यह जान सकते हैं कि कब कौन-सा ज्वालामुखी मुंह फाड़ने वाला है?”
“यंत्र कितने समय पहले संकेत देगा?”
‘एक वर्ष पहले।”
“एक वर्ष?”
“जी हां।” संगीता ने गर्व से कहा—“यंत्र यह भी बताएगा कि फटने वाला ज्वालामुखी कितना शक्तिशाली है, कितने क्षेत्रफल में उसके फटने का क्या असर होगा, यह सब कुछ हमें एक वर्ष पहले ही पता लग जाएगा और एक वर्ष उस क्षेत्रफल को आबादी रहित कराने के लिए शायद काफी होता है, इस प्रकार मेरे इस यंत्र का उपयोग शुरू होने के बाद शायद एक भी प्राणी ज्वालामुखी के कारण मर नहीं सकेगा!” उत्सुक भाव से बुरी तरह घिरे आंद्रोपोव ने कहा–“हम तुम्हारा यंत्र देखना चाहते हैं बेटी!” फिर, संगीता ने एयर बैग से निकालकर ‘स्टेपलाईजर’ जैसे आकार का एक यंत्र मेज पर रख दिया। एक के बाद एक सभी वैज्ञानिकों ने उसे देखा और फिर, संगीता ने सभी को उस यंत्र की कार्यविधि बताई। जब दावा संगीता ने किया था तो!
वह विशाल हॉल तालियों की गड़गड़हाट से गूंज उठा!
दनिया के नंबर वन वैज्ञानिक संगीता को बधाईयां देने लगे और संगीता खुशी से सराबोर हुई जा रही थी। फन से गर्दन अकड़ाए खड़ी थी वह, हॉल में गंजती तालियों का शोर थमने का नाम ही न ले रहा था कि संगीता को किसी ने बुरी तरह झिंझोड़ दिया।
वह हड़बड़ाकर उठी।
हॉल, दुनिया के चुनिंदा वैज्ञानिक, भूकंप की सूचना देने वाला यंत्र और तालियों की गड़गड़हाट आदि सभी कुछ एक पल ही झटके में गायब हो गया।
अगर वहां कुछ था तो एक छोटा-सा गंदा पड़ा कमरा। इस कमरे में एक कोने में बिछी हुई टूटी-फूटी एवं ढीली चारपाई और इसी चारपाई पर पड़ी संगीता।
अभी वह ठीक से संभल भी न पाई थी कि कानों में एक कर्कश आवाज़ पड़ी “सुबह के आठ बज गए हैं और अभी तक खाट से चिपकी पड़ी है महारानी!” यह आवाज़ उसके भाई की थी।
चारपाई पर उठकर बैठ गई संगीता ने चौंककर टीट की तरफ देखा, हमेशा की तरह गुस्से में भुनभुनाता-सा टीटू उसे घूर रहा था। संगीता चाहकर भी कुछ बोल नहीं सकी। ऐसे अंदाज में उसे देखती रही जैसे कुछ समझ न पा रही हो।
टीट् ठीक किसी ज्वालामुखी के समान ही फट पड़ा “इस तरह मुझे क्यों घूर रही है?”
“कुछ नहीं!” संगीता ने धीरे से कहा।
मैंने तुझसे कल इस कमीज में बटन लगाने के लिए कहा था, क्यों नहीं लगा?”
संगीता ने नज़र उठाकर कमीज की तरफ देखा, फिर आहिस्ता से उठती हुई बोली—“सॉरी भइया, मैं भूल गई थी!”
“हंह। भूल गई थी। मेरी कोई बात याद ही कहां रहती है तुझे?”
संगीता ने कोई जवाब नहीं दिया। घड़े से पानी लेकर वह दध से गोरे एवं पूर्णिमा के चांद से गोल मुखड़े पर ‘छपके’ मारने लगी और उस वक्त वह रस्सी पर टंगे गंदे तौलिए से चेहरा पोंछ रही थी जब टीटू ने कहा “तुझे तो बस दो ही काम याद रहते हैं। सोना या कॉलिज जाना। वहां रोज-रोज नए-नए लड़कों के साथ घूमने को मिलता है न?”
“भइया?”
प्रतिरोध स्वरूप संगीता चीख पड़ी। टीटू ने व्यंग्य किया क्यों, क्या मैं गलत कह रहा हूं?”
“अपनी बहन पर झठा आरोप लगाते तुम्हें शर्म नहीं आती?”
“शर्म?”
टीटू ने पुनः व्यंग्य किया–“जब तुझ ही को लड़कों से भरे कॉलिज में सैर-सपाटे करने में शर्म नहीं आती तो मुझे भला काहे की शर्म आए?”
मैं तुमसे कितनी बार कह चुकी हं कि एमएससी में सभी को साथ पढ़ना पड़ता है। फिर भी मैं किसी लड़के से बात तक नहीं करती।
क्या तुमने मुझे कभी किसी लड़के से बातें करते या उसके साथ घूमते-फिरते देखा है?”
“जिस दिन देख लूंगा, उस दिन के बाद क्या वह हरामजादा दूसरे दिन का सरज देख सकेगा?”
दांत भींचकर टीट ने बड़े ही खंखार स्वर में कहा–“चीर-फाड़कर साले की बोटियां चील-कौओं के सामने नहीं डाल दंगा और तुझे-तुझे यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि उस दिन से तेरा कॉलिज जाना बंद हो जाएगा।”
एक बार तो कांप गई संगीता!
अपने भाई को वह अच्छी तरह जानती थी। उसे मालूम था कि टीटू और बागेश की जोड़ी सारे इलाके के लिए आतंक का कराण है। कभी इन में एक पल के लिए भी नहीं हिचकेगा जो कह रहा है।
संगीता के कुछ बोलने से पहले ही, कमरे में दाखिल होती हई उनकी मां ने कहा “देख, फिर सुबह-सुबह डांटने लगा उस बेचारी को। अरे जरा-सा बटन लगाना भूल गई तो कहां का पहाड़ टूट पड़ा। ला, मैं लगा देती हं बटन!” कमीज मां की तरफ उछालता हुआ टीटू बोला “तूने ही इसे सिर पर चढ़ा रखा है मां!”
“तुम बाप-बेटों ने तो बस यही एक बात रट रखी है!” हाथ में दबे सुई-धागे से अपने काम में व्यस्त होती मां