112
pages
Hindi
Ebooks
2019
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Publié par
Date de parution
03 mai 2019
Nombre de lectures
6
EAN13
9788184752571
Langue
Hindi
Publié par
Date de parution
03 mai 2019
EAN13
9788184752571
Langue
Hindi
पेंगुइन बुक्स
इनर इंजीनियरिंग
एक योगी और दिव्यदर्शी, सद्गुरु एक आधुनिक गुरु हैं। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोड़ों लोगों को एक नई दिशा मिली है। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।
सद्गुरु ने योग के गूढ़ आयामों को आम आदमी के लिए इतना सहज बना दिया है कि हर व्यक्ति उस पर अमल करके अपने भाग्य का स्वामी खुद बन सकता है। सद्गुरु जितनी गहराई से आंतरिक अनुभव एवं ज्ञान से जुड़े हैं, उतनी ही गहराई से सांसारिक मुद्दों से भी जुड़े हैं। अध्यात्म पर सद्गुरु की दक्षता उनके गहन आंतरिक अनुभव का ही परिणाम है, जिससे वे अध्यात्म की खोज करने वालों का मार्गदर्शन करते हैं।
सद्गुरु को दुनिया के प्रतिष्ठित मंचों पर मानवाधिकार, कारोबार मूल्यों और सामाजिक, पर्यावरण और अध्यात्म संबंधी विविध मुद्दों पर बोलने के लिए बुलाया जाता है। एक प्रमुख वक्ता के रूप में, सद्गुरु ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में मानव कल्याण जैसे मुद्दों को संबोधित किया है। इसके अतिरिक्त वे मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, लंदन बिज़नेस स्कूल, वर्ल्ड प्रेसिडेंट ऑर्गेनाइजेशन, हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स (यूके) संयुक्त राष्ट्र संघ मिलेनियम शांति सम्मेलन और विश्व शांति कांग्रेस में भी एक वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं।
सद्गुरु ईशा फाउंडेशन के संस्थापक भी हैं, जो पिछले तीन दशकों से व्यक्तिगत और विश्व कल्याण को समर्पित एक गैर-लाभकारी संगठन है।
सद्गुरु जीवन के हर पहलू को एक उत्सव की तरह जीते हैं। उनकी रुचि जीवन के लगभग हर क्षेत्र में है, जिसमें शिल्प और डिज़ाइन, काव्य और चित्रकला, खेल और संगीत, पर्यावरण और कृषि शामिल हैं। ईशा योग केंद्र में स्थापित कई भवनों को सद्गुरु ने खुद डिजाइन किया है, जो अपनी अनूठी कलात्मकता के लिए विख्यात हैं। ईशा योग केंद्र आत्म-रूपांतरण के लिए एक पवित्र स्थान है, और सद्गुरु ने एक योगी और दिव्यदर्शी के रूप में इस पूरे केंद्र की प्राण-प्रतिष्ठा की है।
प्राचीनता से आधुनिकता में सहज विचरते हुए, ज्ञात और अज्ञात के बीच एक सेतु बनकर, सद्गुरु अपने सान्निध्य में आने वाले हरेक व्यक्ति को जीवन के गहरे आयामों को खोजने और उनका अनुभव करने के लिए समर्थ बनाते हैं।
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इनर इंजीनियरिंग
आनंदमय जीवन के सूत्र
सद्गुरु
पेंगुइन बुक्स
पेंगुइन बुक्स
यू.एस.ए. । कैनेडा । यू.के.। आयरलैंड। ऑस्ट्रेलिया न्यूज़ीलैंड। भारत। दक्षिण अफ्रीका। चीन
पेंगुइन बुक्स पेंगुइन रैंडम हाउस ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ का हिस्सा है, जिसका पता global.penguinrandomhouse.com पर मिलेगा
पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया प्रा. लि., सातवीं मंजिल, इनफिनिटी टावर सी, डी एल एफ साइबर सिटी, गुड़गांव 122002, हरियाणा, भारत
प्रथम हिन्दी संस्करण 2019 में प्रकाशित
कॉपीराइट © सद्गुरु 2019 अनुवाद व संपादन : ईशा पब्लिकेशन
सर्वाधिकार सुरक्षित
इस पुस्तक में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं, जिनका यथासंभव तथ्यात्मक सत्यापन किया गया है, और इस संबंध में प्रकाशक एवं सहयोगी प्रकाशक किसी भी रूप में उत्तरदायी नहीं हैं।
ISBN 9788184752571
मुद्रकः रेप्लिका प्रेस प्रा. लि., इंडिया यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की लिखित पूर्वानुमति के बिना इसका व्यावसायिक अथवा अन्य किसी भी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। इसे पुनः प्रकाशित कर विक्रय या किराए पर नहीं दिया जा सकता तथा जिल्दबंद अथवा किसी भी अन्य रूप में पाठकों के मध्य इसका परिचालन नहीं किया जा सकता। ये सभी शर्तें पुस्तक के ख़रीददार पर भी लागू होंगी। इस संदर्भ में सभी प्रकाशनाधिकार सुरक्षित हैं। www.penguin.co.in
अनुक्रम
दो अक्षरों का एक बदनाम शब्द
खंड - 1
पाठकों के लिए संदेश
जब मैंने अपनी सुध-बुध खो दी
हर मुश्किल का हल आपके अंदर ही है
खुद बनाएँ अपना भाग्य
न कोई सीमा, न कोई बोझ
“. . . और अब योग”
खंड - 2
पाठकों के लिए संदेश
शरीर
मन
ऊर्जा
आनंद
इनर इंजीनियरिंग
दो अक्षरों का एक बदनाम शब्द
ए क दिन एक आदमी शंकरन पिल्लई की दवा की दुकान की तरफ़ जा रहा था कि उसे दुकान के बाहर लैंप पोस्ट से लिपटा एक आदमी नजर आया। उसे देखकर वह हैरान रह गया। जब वह दुकान के अंदर गया तो उसने शंकरन से पूछा, ‘वह आदमी कौन है? क्या हुआ है उसको?’
शंकरन पिल्लई ने तुरंत जवाब दिया, ‘अरे वह मेरा ही ग्राहक है।’
‘लेकिन उसको हुआ क्या है?’
‘वह खांसी की कोई दवा माँग रहा था। मैंने दवा दे दी।’
‘आपने उसको क्या दवा दी?’
‘मैंने एक डिब्बा “जुलाब” (पेट साफ़ करने की दवा) दे दिया, और उसे यहीं खा लेने के लिए कहा।’
‘सिर्फ़ खांसी के लिए जुलाब! आपने उसे जुलाब क्यों दिया?’
‘अब जरा उसे देखो, वह खाँसने की हिम्मत भी नहीं कर सकता!’
अपनी खुशहाली की तलाश करने वाले लोगों को भी आज दुनिया में इसी तरह का जुलाब पिलाया जा रहा है, जिसकी वजह से “गुरु” आज महज दो अक्षरों का एक शब्द बनकर रह गया है।
दुर्भाग्य से, हम इस शब्द का सही अर्थ भूल गए हैं। “गुरु” शब्द का अर्थ है “अंधेरे को दूर करने वाला”। आम धारणा यह है कि गुरु का काम ज्ञान व उपदेश देना या धर्म-परिवर्तन करना होता है। पर ऐसा नहीं है। गुरु का काम आपके लिए उन आयामों को उजागर करना है, जो अभी आपके अनुभव में नहीं हैं, जो आपकी ज्ञानेंद्रियों के बोध तथा आपके मनोवैज्ञानिक नाटक से परे होते हैं। मुख्य रूप से, गुरु इसलिए होता है ताकि वह आपके अस्तित्व की प्रकृति से आपका परिचय करा सके।
आजकल बहुत ही ग़लत और खतरनाक ढंग से बहकाने वाली शिक्षाएँ दी जा रही हैं। इन्हीं में से एक है – “इस पल में रहना”। ऐसी शिक्षा देने के पीछे धारणा यह है कि अगर आप चाहें तो आप कहीं और भी रह सकते हैं। भला यह कैसे संभव है? वर्तमान ही एक ऐसी जगह है, जहाँ आप रह सकते हैं। अगर आप जीवित हैं तो इसी पल में जीवित हैं, अगर आप मरते हैं तो इसी पल में मरते हैं। यह पल नित्य है, शाश्वत है। अगर आप चाहें भी, तो इससे कैसे भाग सकते हैं?
अभी आपकी समस्या यह है कि आप उन चीजों को लेकर परेशान रहते हैं, जो दस साल पहले आपके साथ घटित हुई थीं, या इस बात को सोच-सोचकर परेशान रहते हैं कि कल कुछ होने वाला है। लेकिन दोनों ही जीवंत वास्तविकता नहीं हैं। यह सब स्मृति व कल्पना के खेल हैं। तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि आपको शांति पाने के लिए अपने दिमाग को मार देना चाहिए? बिलकुल नहीं। इसका बस इतना ही मतलब है कि आपको अपने दिमाग की डोर थामने की ज़रूरत है। आपके दिमाग में बहुत अधिक यादें होती हैं तथा कल्पना की बहुत अधिक संभावनाएँ भी होती हैं, जो लाखों साल की विकास-प्रक्रिया का नतीजा है। जब आप चाहें, इसका इस्तेमाल करें और जब ज़रूरत न हो तो इसको एक तरफ़ रख दें, तो ऐसे में दिमाग बहुत अच्छा उपकरण हो सकता है। अतीत से बचकर निकलना और भविष्य की उपेक्षा करना, इस शानदार क्षमता को महवहीन बना देता है। इसलिए “इस पल में रहना” एक तरह से हमारे लिए मनोवैज्ञानिक रुकावट बन जाता है, जो हमारे अस्तित्वगत सत्य को नकारता है।
आजकल एक और शिक्षा दी जा रही है – “एक समय में एक काम करें” – यह एक लोकप्रिय “स्लोगन” बन गया है। जब दिमाग जैसी बहुआयामी मशीन हमारे पास है, जो बहुत सी-गतिविधियों को एक-साथ सँभाल सकता है, तो एक समय में एक ही काम क्यों करें? बजाय इसके कि इसका उपयोग करना सीखा जाए और दिमाग को साधना सीखा जाए, आप इसको मारना क्यों चाहते हैं? जब आप जानते हैं कि मानसिक काम करने की खुशी कैसी होती है, फिर दिमाग को संकुचित क्यों किया जाए, उसे जानबूझकर जड़ क्यों बनाया जाए?
एक और मुहावरा है, जो बहुत अधिक फैशन में है, जिसका बिना सोचे-समझे प्रयोग किया जाता है, वो है, “सकारात्मक सोच”। जब आप इसका उपयोग एक ऐसे मंत्र के रूप में करते हैं, जिससे सब कुछ जल्दी से ठीक हो जाए तब यह मंत्र नहीं, बल्कि सच्चाई पर परदा डालने का काम करता है। जब आप अपने दिमागी ड्रामा के ऊपर काबू नहीं कर पाते, तब “सकारात्मक सोच” का इस्तेमाल करते हैं। शुरू में, हो सकता है, यह आपके जीवन को नए आत्मविश्वास और उम्मीद से भर दे, लेकिन वास्तव में यह बहुत सीमित है। अगर लंबे समय तक आप वास्तविकता को नकारते हैं, तो यह आपके जीवन के दृष्टिकोण को एकतरफ़ा बना देता है।
इसके अलावा इंसान की खुशहाली को स्वर्ग को एक्सपोर्ट करने का कारोबार काफी समय से चला आ रहा है और यह दावा किया जा रहा है कि संसार का मूल प्रेम है। प्रेम मानवीय संभावना है। अगर आप इस बारे में कोई कोर्स करना चाहते हैं, तो आप अपने कुत्ते से सीख सकते हैं, वह प्रेम से भरा होता है। प्रेम को जानने के लिए आपको किसी और ग्रह पर नहीं जाना है। ये सभी बचकाने सिद्धांत इस धारणा से आते हैं कि ये सारा अस्तित्व मानव-केंद्रित है। इस एक विचार ने हमसे हमारी समझ छीनकर इतिहास में हमसे कुछ जघन्य अमानवीय अपराध कराए हैं। और ये सब आज भी हो रहा है।
एक गुरु के रूप में, मेरे पास देने के लिए कोई शिक्षा नहीं है, समझाने के लिए कोई फिलासफी नहीं है, प्रचार करने के लिए कोई मत या सिद्धांत नहीं है। और ऐसा इसलिए है, क्योंकि मानवता की समस्त बीमारियों का एकमात्र हल है : ख़ुद का रूपांतरण। आत्म-रूपांतरण ख़ुद को धीरे-धीरे बेहतर बनाना नहीं है। आत्म-रूपांतरण, नैतिकता व आचार-संहिता से या व्यवहार में बदलाव लाने से नहीं होता, बल्कि अपनी असीमित प्रकृति को अनुभव करने से होता है। आत्म-रूपान्तरण का मतलब है कि अब पुराना कुछ भी नहीं रहा। यह जीवन को जानने और अनुभव करने के पूरे आयाम को ही बदल देता है। इसको जानना ही योग है। जो व्यक्ति अपने जीवन में इसे साकार कर लेता है, वह योगी है। जो इस दिशा में आपका मार्गदर्शन करता है, वह गुरु है।
इस पुस्तक के माध्यम से मेरा उद्देश्य यह है कि आनंद आपका हमेशा का संगी-साथी बन जाए। इसे एक वास्तविकता बनाने के लिए यह पुस्तक आपको कोई उपदेश नहीं, बल्कि एक विज्ञान भेंट करती है; कोई शिक्षा नहीं, बल्कि एक तकनीक भेंट करती है, कोई नियम नहीं, बल्कि एक मार्ग भेंट करती है। उस विज्ञान की खोज करने का, उस तकनीक के ऊपर काम करने का, उस रास्ते पर चलने का अब समय आ गया है।
गुरु इस यात्रा की मंजिल नहीं है, बल्कि वह रोडमैप है। आंतरिक आयाम एक अनजाना इलाका है। अगर आप ऐसे रास्ते पर चलते हैं जो आपके लिए अनजान है, तो क्या यह अच्छा नहीं होगा कि आपके पास रोडमैप हो? एक तरह से गुरु का मतलब होता है – जीता-जागता रोड मैप! “जीपीएस” यानी “गुरु पाथफ़ाइंडिंग सिस्टम”!
और इसीलिए है दो अक्षरों का यह बदनाम शब्द। आपका काम दोगुना आसान बनाने के लिए मैंने सोचा इसे चार अक्षरों का बना दूँ ...
... सद्गुरु
खंड - 1
पाठकों के लिए संदेश
इ स तरह की पुस्तक को पढ़ने के कई नजरिये हो सकते हैं। पहला यह कि आप सीधे अभ्यासों को करना शुरू कर दें, खुद से इनको आजमाने में लग जाएँ। मगर यह किताब सेल्फ-हेल्प पुस्तिका होने का दावा नहीं करती। इसमें एक ज़बरदस्त व्यावहारिक रुझान तो है, पर इसके अलावा भी बहुत-कुछ है।
दूसरा यह कि इसे आप सैद्धांतिक रूप से लें। मगर यह विद्वत्ता हासिल करने के लिए भी नहीं है। मैने कभी भी योग का कोई ग्रंथ पूरी तरह नहीं पढ़ा। मुझे कभी पढ़ने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी। मैंने आंतरिक अनुभव को आधार बनाया। अपने जीवन में, काफी बाद में जाकर मैंने पतंजलि के कुछ योग-सूत्रों को सरसरी निगाह से पढ़ा, जो कि योग का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है, तब मैंने महसूस किया कि उनके मर्म तक मेरी एक खास पहुँच है। इसका कारण यह है कि मैंने उन्हें सैद्धांतिक रूप से पढ़ने के बजाय अनुभव के स्तर पर देखा। योग जैसे एक गूढ़ विज्ञान को सिर्फ एक सिद्धांत में सीमित कर देना उतना ही दुखद है, जितना कि उसका इस्तेमाल बीमारियों को दूर करने वाली कसरतों के रूप में करना।
और इसलिए, इस किताब को अंतत: दो खंडों में बाँटा गया है। पहले मे