Hatya Ek Suhagin Ki/हत्या एक सुहागिन की , livre ebook

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इस उपन्यास में सीमा और उसके पति गजराज और पिता बलवंत की कहानी है। गजराज कम समय में धनवान बनने की चाहत में अपनी धनवान पत्नि सीमा की हत्या करना चाहता है, ताकि वह उसकी दौलत का मालिक बन सके। लेकिन गजराज का अंधा ससुर वलबंत उसकी हर चाल फेल करता रहता है। इस दौरान करोड़ों की वेन रॉबरी होती है, जिसमें नोट छापने का कागज लूट लिया जाता है। गजराज कागज लूटने वालों से मिलकर उस कागज से अब नोट छापने की योजना बनाता है और पत्नी की हत्या का ख्याल छोड़ देता है। इस दौरान करोड़ों की वेन रॉबरी होती है, जिसमें नोट छापने का कागज लूट लिया जाता है। गजराज कागज लूटने वालों से मिलकर उस कागज से अब नोट छापने की योजना बनाता है और पत्नी की हत्या का ख्याल छोड़ देता है।
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Date de parution

30 juin 2022

EAN13

9789354922664

Langue

Hindi

हिन्द पॉकेट बुक्स
हत्या एक सुहागिन की
10 जून, 1955 को मेरठ में जन्मे वेद प्रकाश शर्मा हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार थे। उनके पिता पं. मिश्रीलाल शर्मा मूलत: बुलंदशहर के रहने वाले थे। वेद प्रकाश एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे हैं। एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी मृत्यु हो गई। 1962 में बड़े भाई की मौत हुई और उसी साल इतनी बारिश हुई कि किराए का मकान टूट गया। फिर एक बीमारी की वजह से पिता ने खाट पकड़ ली। घर में कोई कमाने वाला नहीं था, इसलिए सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई। मां के संघर्ष से इन्हें लेखन की प्रेरणा मिली और फिर देखते ही देखते एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखते चले गए।
वेद प्रकाश शर्मा के 176 उपन्यास प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त इन्होंने खिलाड़ी श्रृंखला की फिल्मों की पटकथाएं भी लिखी। वर्दी वाला गुंडा वेद प्रकाश शर्मा का सफलतम थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की आज तक करोड़ों प्रतियां बिक चुकी हैं। भारत में जनसाधारण में लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों की दुनिया में यह उपन्यास सुपर स्टार का दर्जा रखता है।
हिन्द पॉकेट बुक्स से प्रकाशित
लेखक की अन्य पुस्तकें
वर्दी वाला गुण्डा सुहाग से बड़ा सुपरस्टार चक्रव्यूह पैंतरा खेल गया खेल सभी दीवाने दौलत के बहु मांगे इंसाफ़ कारीगर साढ़े तीन घंटे कैदी नं. 100
वेद प्रकाश शर्मा


हत्या एक सुहागिन की
‌विषयक्रम
हत्या एक सुहागिन की
 
फॉलो पेंगुइन
कॉपीराइट
हत्या एक सुहागिन की
सीमा ठाकुर की नींद न जाने कैसे उचट गई। चेहरे के अतिरिक्त समूचा शरीर लिहाफ के भीतर था। सर्दी काफी अधिक थी, मगर फिर भी उसने अपने संपूर्ण जिस्म को पसीने से लथपथ महसूस किया।
जाने क्यों अजीब-सा डर लग रहा था उसे। अपने दिलोदिमाग पर हावी अनजानी दहशत का कारण जानने के लिए उसने दिमाग पर जोर डाला।
क्या मैंने कोई सपना देखा है?
दूर से ‘लिद्दर नदी’ के बहने का शोर सुनाई दे रहा था। तेज बहाव वाली पथरीली नदी से उत्पन्न होने वाला शोर भी उस वक्त उसे डरावना ही लगा।
एकाएक ही सीमा ठाकुर को ऐसा आभास हुआ कि कक्ष में उसके पति गजराज के अलावा भी कोई है हालांकि अंधेरे के कारण उसे कुछ दिखाई नहीं दिया, परंतु कानों ने एक आवाज़ सुनी थी।
किसी जंगली जानवर के जोर-जोर से सांस लेने की आवाज़। ‘खें-खें’ की यह आवाज़ बहुत ही डरावनी थी।
सीमा ठाकुर के होश उड़ गए। काफी देर तक वह जड़वत् अवस्था में बैड से चिपकी रही। कक्ष में निरंतर गूंजने वाली ‘खें खें’ की आवाज़ उसे हिलने तक नहीं दे रही थी। किसी अनजाने भयवश वह बुरी तरह आतंकित हो गई थी।
हिम्मत करके उसने गजराज को टटोला, पति का कंधा हाथ में आ गया और अगले ही पल इस कंधे को सीमा ठाकुर ने जोर से झंझोड़ दिया।
गजराज कुलबुलाया।
डरी हुई सीमा ठाकुर ने उसे पुनः झंझोड़ा।
“क्या बात है डार्लिंग?” गजराज नींद में ही बड़बड़ाया “सोने दो न!”
“राज-राज!” झंझोड़ती हुई सीमा ठाकुर ने पुकारा तो अपनी आवाज़ को स्वयं ही बुरी तरह महसूस किया उसने।
“हं!” एक मीठी हंकार के साथ गजराज ने उसे बांहों में भर लिया।
सीमा ठाकुर की आवाज़ कांप रही थी “सुनो राज कमरे में कोई है!”
“यहां कौन आएगा डार्लिंग?”
“ध्यान से सुनो कोई सांसें ले रहा है!”
कमरे में खामोशी छा गई गजराज भी जैसे अब कुछ सुनने की चेष्टा कर रहा था और उनका, वार्तालाप बंद होते ही कक्ष में गूंजने वाली ‘खें-खें’ की आवाज़ बिल्कुल स्पष्ट सुनाई देने लगी। डरी हुई सीमा ने पूछा “सुन रहे हो?”
अगले ही पल ‘कट’ की आवाज़ के साथ गजराज ने बैड स्विच ऑन कर दिया।
कक्ष एक बल्ब के पीले प्रकाश से भर गया।
पति-पत्नी एक साथ उठ बैठे और यही क्षण था जब सीमा के मुंह से डरावनी चीख निकलकर डाक बंगले के बाहर पहलगाम’ की वादियों में भटक गई।
चीखकर उसने गजराज के सीने में मुखड़ा छुपा लिया था।
गजराज के कंठ से भले ही चीख न निकली हो, परंतु होश उसके भी उड़ गए थे। सूखे पत्ते की तरह कांपकर उसने सीमा को बांहों में भर लिया आंखों में हैरत और दहशत के संयुक्त भाव लिए वह कक्ष में मौजूद एक पहाड़ी सूअर को देखता रह गया।
अपनी गंदी और भयानक थूथनी उठाए वह गजराज और सीमा की तरफ ही देख रहा था सख्त सर्दी के बावजूद गजराज पसीने-पसीने हो गया।
रीढ़ की हड्डी में बिजली-सी कौंध उठी। गजराज के सीने में चेहरा छुपाए अभी तक कांप रही सीमा ने कहा “इस गंदे जानवर को यहां से भगा दो राज।”
साहस करके गजराज ने सीमा को अपने से अलग किया।
बैड से उतरा। उसके जिस्म पर इस वक्त नाइट सूट था। दाएं हाथ को चूंसे की शक्ल देकर उसने हवा में उठाया, और ‘हट-हट’ करता हुआ सूअर की तरफ बढ़ा। सूअर की थूथनी से गुर्राहट निकली।
अपनी छोटी-सी पूंछ लहराई उसने और सीमा ठाकुर का चेहरा पीला पड़ता चला गया। स्वयं गजराज भी सहमकर ठिठककर रुक गया था।
ठिठकते ही हिनहिनाकर सूअर ने उस पर जम्प लगा दी। गजराज और सीमा की संयुक्त चीखें गूंजती चली गई। विशालकाय सूअर कुछ ऐसे वेग से गजराज के ऊपर आकर गिरा था कि चीख के साथ कक्ष में बिछे कालीन पर लुढ़क गया। सूअर अपनी गंदी थूथनी से उसके बालों को झंझोड़ने लगा।
“बचाओ-बचाओ!” सीमा ठाकुर हलक फाड़कर चिल्लाने लगी। मगर वहां दूर-दूर तक कोई इस आवाज़ को सुनने वाला नहीं था।
उधर, किसी तरह खुद को सूअर से मुक्त करके गजराज ने बैड के सिरहाने पर जम्प लगाई और अगले ही पल हाथ में रिवॉल्वर लिए वह सूअर की तरफ पलटा।
बदबूदार थूथनी उठाए सूअर उसे देख रहा था।
गजराज के हाथ में भले ही रिवॉल्वर था, परंतु हाथ बुरी तरह कांप रहा था। दिलोदिमाग पर दहशत हावी थी, और इस बार सूअर ने हिनहिनाकर जैसे ही गजराज पर जम्प लगाई वैसे ही “धांय।”
एक भयानक डकार के साथ हवा में उछला सूअर का भारी जिस्म ‘धम्म’ से गिरा। गंदी थूथनी उठाकर सूअर तड़पा और फिर एक झटके के बाद निश्चल पड़ गया।
रिवॉल्वर की नाल से अभी तक धुंआ निकल रहा था। गजराज ने सूअर को मार जरूर दिया था, किंतु आतंकवश वह अभी तक किसी पत्ते के समान ही कांप रहा था। सीमा अपने दोनों हाथों से चेहरा छुपाए डर की ज्यादती के कारण अब रोने लगी थी।
गजराज ने उसे पुकारा “सीमा-सीमा।” फूट-फूटकर रोती हुई सीमा गजराज से आ लिपटी। गजराज ने अपनी बाईं भुजा उसके चारों तरफ लपेट दी। बोला “डरती क्यों है पगली वह मर गया है।”
सीमा ने कक्ष में पड़ी सूअर की लाश को देखा तो सिहर उठी।
“मगर!” कमरे के सभी दरवाज़ों पर नजर डालते हुए गजराज ने कहा “सभी दरवाज़े अंदर से बंद हैं- यह कम्बख्त अंदर कहां से आ गया?”
बेचारी सीमा भला उसके प्रश्न का क्या जवाब देती?
गजराज ने अपनी रिस्टवॉच पर नजर डाली। सुबह के पांच बज रहे थे। रिवॉल्वर जेब में डालते हुए उसने कहा “डरो मत डार्लिंग आओ।”
वे बैड के समीप आ गए। “यहां से चलो राज मुझे बहुत डर लग रहा है!” सीमा ने कहा।
उसे आहिस्ता से बिस्तर पर बैठाने के बाद गजराज ने कुछ कहने के लिए होंठ खोले ही थे कि वातावरण में ‘छनाक’ की एक जोरदार आवाज़ गूंजी।
दाहिनी तरफ की खिड़की का शीशा झनझनाकर टूटा। एक भारी पत्थर कक्ष की सामने वाली दीवार पर टकराने के बाद कालीन पर गिर गया और यह सब मात्र एक क्षण में हो गया था।
एक-दूसरे को बांहों में जकड़े पति-पत्नी थर-थर कांप रहे थे। “ये क्या हो रहा है राज?”
मगर गजराज की आंखें कालीन पर पड़े पत्थर पर चिपककर रह गई थी। पत्थर एक कागज़ में लिपटा हुआ था और कागज़ के ऊपर चढ़े हुए थे रबर के कई छल्ले।
गजराज ने उस खिड़की की तरफ देखा जिसके शीशे को तोड़कर वह पत्थर कक्ष के अंदर आया था खिड़की के इस तरफ पर्दा पड़ा था।
पर्दा अभी तक हिल रहा था।
एकाएक ही गजराज में जाने कहां से इतना साहस आ गया था कि रिवॉल्वर निकालकर वह खिड़की की तरफ दौड़ा। झटके से उसने पर्दा एक तरफ सरका दिया।
बाहर पहाड़ियों में पिघली हुई चांदी-सी चाँदनी छिटकी पड़ी थी। कहीं कोई नजर नहीं आया। खिड़की के शीशे में एक बड़ा छेद मौजूद था और छेद से शुरू होकर बहुत-सी दरारें चारों तरफ फैल गई थी। गजराज को दूर अपनी दृष्टि के अंतिम छोर तक सिर्फ पहाड़ियां, वादियां और उनमें बिखरी चांदनी ही नजर आई। पत्थर फेंकने वाले का दूर-दूर तक नामोनिशान न था।
कई क्षण तक गजराज बाहर छाई रहस्यमय खामोशी को घूरता रहा। बैड पर बैठी कांप रही सीमा उसी की तरफ देख रही थी। रिवॉल्वर हाथ में लिए गजराज वापस घूमा और फिर तेज कदमों के साथ कालीन पर पड़े पत्थर की तरफ बढ़ा। सीमा की दृष्टि अभी तक खिड़की के पार चमक रही पहाड़ियों पर स्थिर थी।
अचानक खिड़की के समीप एक आदमी नजर आया। शीशे के पार खड़ा वह सीमा को ही घूर रहा था। आतंकित सीमा के कंठ से जोरदार चीख निकल गई।
“क्या हुआ?” बुरी तरह हड़बड़ाकर गजराज ने पूछा। “वह!” खिड़की की तरफ संकेत करके सीमा चीखी। गजराज ने किसी फिरकी की तरह घूमकर खिड़की की तरफ देखा और यह सब है कि वहां खड़े आदमी को देखकर गजराज के हलक से भी चीख उबल पड़ी। बाहर की तरफ खिड़की के बहुत समीप खड़ा वह उन्हें घूर रहा था।
काले या नीले रंग का ओवरकोट पहने था वह। कोट के कॉलर खड़े थे। उस गंजे आदमी का चेहरा बहुत ही डरावना था दो लंबे दांत निचले होंठ पर रखे हुए से मालूम देते थे। सबसे ज्यादा उसकी विचित्र आंखें थी। आंखों का जो हिस्सा सफेद होता है वह काला था और जो काला होता है, वह सफेद।
यानी पुतलियां काली थी। आंखों के तारों का रंग सफेद।
चांदनी में सिर दर्पण-सा चमचमा रहा था। ओवरकोट की जेबों में हाथ डाले वह चेहरे पर अजीब-सी क्रूरता लिए उन्हें घूर रहा था।
पल तक के लिए गजराज किंकर्तव्यविमूढ़-सा उसे देखता रह गया।
फिर जैसे गजराज की चेतना लौटी। रिवॉल्वर वाला हाथ उठाकर उसने एक साथ दो फायर किए। धमाकों की आवाज़ दूर-दूर तक गूंजती चली गई।
परंतु डरावना आदमी पूर्ववत् किसी स्टैचू के समान खड़ा रहा हिला तक नहीं वह, हां भद्दे होंठों पर क्रूर मुस्कान जरूर उभर आई।
और उसके मुस्कुराते ही एक तीसरा दांत चमका। यह दांत सोने का था।
उस पर गोलियों का कोई असर न होता देखकर गजराज भौचक्का रह गया। हड़बड़ाहट में उसने एक और फायर झोंका, किंतु परिणाम वही!
मुस्कुराहट कुछ और क्रूर हो गई। गजराज दरवाज़े की तरफ दौड़ा। चटकनी गिराकर झटके से उसने दरवाज़ा खोला और बाहर निकल आया मगर अब उस तरफ देखते ही उसे एक बार फिर भौचक्का रह जाना पड़ा। खिड़की के इस तरफ कोई नहीं था।
दूर-दूर तक कोई नहीं। वह भागता हुआ खिड़की के नजदीक पहुंचा। अब वह वहां खड़ा था, जहां उसने कमरे के अंदर से भयानक व्यक्ति को खड़े देखा था। गजराज ने यहीं से कमरे के अंदर देखा।
पीली जर्द पड़ी सीमा खिड़की से दूर बैड के समीप खड़ी थर-थर कांप रही थी।
“कहां गया वह?” गजराज ने ऊंची आवाज़ में पूछा।
“जब आप दरवाज़ा खोल रहे थे तब वह नीचे बैठ गया था।” डरी हुई आवाज़ में सीमा ने वहीं से चीखकर बताया।
गजराज अपने आस-पास के पत्थरों को घूरने लगा, मगर काफी कोशिश के बावजूद उसे कहीं से किसी व्यक्ति की मौजूदगी का आभास नहीं मिला।
असमंजस में फंसा आतंकित-सा गजराज वापस कमरे में आया, दरवाज़ा बंद करके चटकनी चढ़ा ली उसने। रिवॉल्वर अब भी हाथ में था। चटकनी चढ़ाने के बाद वह घूमा ही था कि दौड़कर सीमा उनसे आ लिपटी।
डरी हुई पत्नी को उसने बांहों में भर लिया। “वह कौन था राज?”
गजराज शायद चाहकर भी कुछ कह न सका। सीमा को साथ लिए कालीन पर पड़े पत्थर की तरफ बढ़ा। कुछ ही देर बाद वह कागज़ पर लिखी इबारत को पढ़ रहा था। लिखा था हमारी तुमसे या तुम्हारी बीवी से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है मिस्टर गजराज। अतः व्यर्थ ही डरने या आतंकित होने की जरूरत नहीं है।
दरअसल इन सुनसान वादियों में हमें तुमसे एक खास काम लेना है। ऐसा काम, जिसे तुम बड़ी आसानी से कर सकते हो। अगर तुम हमारा यह काम कर दो तो समझो किसी मुसीबत में नहीं फंसे हो।
मुसीबत में तो हमारे काम को ‘इंकार’ करने पर फंसोगे मिस्टर गजराज। या तब फंसोगे जब हमारी इच्छा के खिलाफ कोई कदम उठाने की मूर्खता करोगे। अगर तुमने ऐसी कोई कोशिश की तो इसी डाक बंगले में हम सब तुम्हारी आखों के सामने खूबसूरत बीवी के साथ हनीमून मनाएंगे। इतना नहीं किसी को कत्ल कर देना हमारे बाएं हाथ का खेल है। हनीमून के बाद तुम्हारी लाशें इन वादि

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